आस पास तड़पते लोगो को देखना और कुछ न कर पाना कितनी कोफ़्त होती है न। व्याकुलता ऐसे ही थोड़े न जन्म लेती है। कितना तड़प चुका होगा वो। रक्त का एक एक कतरा बह रहा होगा। दिल से कह ले या आँखों से। ह्रदय ग्लानि से कितना विदीर्ण हो चुका होगा। पैर भी ठहर गए होंगे। असहाय इस दुनिया में सिवाय एक निर्जीव शरीर के।
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वापसी
वापसी की बेला में वों स्वयं ही रह जाता है उस अहसास के साथ जिसमें दर्द छुपा होता है बहुत सी बातों का कुछ अनकहे व बंद हो जाती है कानें खींच ...
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सभी डाकडर बाबू को हमरे तरफ से भी शुभकामनाएँ... हमरे गॉव के नजदीक मनीगंज नाम क एक जगहा बा। मनीगंज नाम से पाठक लोगन के लगत होये किं कौनो धनी...