शेखर आज बहुत ही खुश था। शेखर ने जब दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की थी तब उसके पिताजी ने राजदूत मोटरसाइकिल उसे गिफ्ट में दी थी। शेखर अत्यंत ही प्रतिभाशाली छात्र था। चेहरे पर तेज, ऊर्जावान व चपल था।
उसे घर के बगल में रहने वाली नेहा बहुत पसंद थी। शुरू शुरू में नेहा ने शेखर पर ध्यान नहीं दिया था पर नेहा को अब लगने लगा था शेखर ज्यादा ही उसके घर के आस पास मंडराता है। पहले तो उसने शेखर को ज्यादा भाव नहीं दिया पर बाद में शेखर की मासूमियत व सक्रियता से कुछ कुछ पसंद करने लगी थी।
हां, जब नेहा ने उसको पहली बार मुस्कुरा कर देखा था तब उसके खुशी का ठिकाना ना रहा था।
शेखर अब विश्वविद्यालय में प्रवेश ले चुका था। अपने राजदूत मोटरसाइकिल से प्रतिदिन विश्वविद्यालय जाता था और बड़ा ही खुश रहता था। नेहा भी उसी विश्वविद्यालय में आर्ट्स की स्टूडेंट थी। अब उसकी नेहा से विश्वविद्यालय में प्रतिदिन मुलाकात होने लगी थी दोनों कैंटीन मैं बैठे काफी समय बतियाते रहते थे।
दो वर्ष कैसे बीत गए दोनों को भनक नहीं लगा। शेखर आज कुछ उदास सा था क्योंकि नेहा को उसके साथ समय व्यतीत करना अच्छा नहीं लग रहा था। वह कुछ ना कुछ बहाने बनाकर दूरियां बनाने का प्रयास कर रही थी पर शेखर चकित था नेहा के व्यवहार में अचानक से परिवर्तन हो जाना।
नेहा से उसने पूछा भी था
"नेहा क्या हो गया तुम्हे"
नेहा को उसने एक दूसरे लड़के के साथ विश्वविद्यालय के कैंटीन में देख लिया था। तुरन्त ही वहाँ से चला गया था।
आज बी. एस. सी. द्वितीय वर्ष की परीक्षा परिणाम आया था। शेखर फेल हो गया था।
घर में उसके पापा बहुत डाँटने लगे थे। शेखर की सौतेली माँ शेखर के सौतेले भाईयो में मस्त रहती। शेखर बेचारा अपनी मन का दुःख किससे कहता।
शेखर गऊघाट पर सड़क के एक किनारे पर पड़ा था। किसी ने उसको उठा कर अस्पताल पहुँचाया था। जब उसको होश आया तब उसके पिता नर्स से कह रहे थे,
" मेरा प्रतिदिन आना मुश्किल है, खर्च की चिंता न करों।"
रो पड़ा था उस दिन।
सेकेंडो में सब अजनबी कैसे हो गये।
एक दिन अस्पताल से खुद ही निकल गया। कोई कुछ पूँछता तो बस मुस्कुरा देता।
हाय!!! दुनिया!!!
अब सिर्फ चौखट ही सहारा रह गये थे।
@व्याकुल