कश्मशा रहा ये सोचकर
कह सकुँ कुछ
हाथ बढ़ाँऊ
और पकडुँ
तेरा हाथ
कह सकुँ
चलो कही घूम ले
या कहु कुछ
बहाने से
तब शायद मान जाओ...
आँखों में आँखे
डाल कर
समझाऊ
अब दुबारा नही होगा
हाथ बढ़ाऊ
तो
छू नही पाता
दूर इतना तो
नही
तुम देखती भी
नही...
आँसु ठहर
गयी
किनारों पर
याद आया
ये तो सिर्फ
एहसास है
अस्तित्व
रूह का..
बस देखते
रहना है
और निरुत्साह सा
भ्रम में जीने की
लालसा...
@व्याकुल