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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

पत्थर




पत्थर से पाला बहुत ही छोटी उम्र में ही पड़ गया था। हमारे मोहल्ले में प्रतिदिन पत्थरबाजी होती थी। एक ग्रुप जो कारगिल जैसी चढ़ाई पर था हम लोग नीचे रहते थे। लेकिन जीतते हम लोग ही थे।

दूसरा पाला पड़ा जब थोड़े समझदार हुए। कुछ मकानों की नींव पर पत्थर देखा। पता किया तो शंकरगढ के पत्थर थे।

पत्थर को अगर समझना हो तो तीन शब्दो से समझा जा सकता है 'कड़ी कलेवरवाली सामग्री'।

फिर थोड़े बड़े हुए तो मुहावरों में पढ़ा
'पत्थर का कलेजा'  मतलब कठोर ह्रदय। आजकल इस मुहावरे को उल्ट भी सकते है।

मुहावरा पढ़ने की श्रंखला में एक मुहावरा ये भी पढ़ा 'पत्थर की छाती' मतलब कभी न हारनेवाला दिल। ये भी दिख जाता है जब हमारी सुरक्षा दल धैर्य का पूर्ण पालन कर रही होती है।

इसी श्रृंखला में एक और मुहावरा मिला 'पत्थर को जोंक लगाना' मतलब अनहोनी बात करना। भाई पत्थर पर जोंक लगाने का कोई मतलब नही। जोंक लगाना ही है उनके दिमाग पर लगाओं जिनका दिल पत्थर का हो गया है।

पत्थर में वो भाव नही आ पाते जो भाव शिला से आते है। शिला में एक ठहराव दिखता है पत्थर तो खुद टूटा हुआ है नकारात्मकता तो होगी ही।

कही मै पढ़ रहा था तो पता चला कि रोमानिया के किसी गाँव में पत्थर का आकार दिन प्रतिदिन वहाँ बढ़ रहा है। काश! यहाँ पर भी छतों पर रखे पत्थर का आकार बढ़ जाये जिससे उठाने वालो का हाल.....

दिक्कत तो तब है अगर पत्थर अपने अपनो पर फेंके। सुहैल अज़ीमाबादी लिखते भी है -

'पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन
जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है'

हम तो ठहरे पक्के हिन्दुस्तानी पत्थर में भी देवता तलाश लेते है।
पत्थर बन गये लोगो को भी तार देते है ।

पत्थर की मुश्किलों को कौन समझ पाया है आजतक। समझना हो तो मदन मोहन दानिश की पंक्तियों को पढ़ो -

'पत्थर पहले ख़ुद को पत्थर करता है
उसके बाद ही कुछ कारीगर करता है'

अब चूँकि सोशल मीडिया का जमाना है तो ख्वाहिश व्यक्त कर ही दूँ एक ईमोजी पत्थर फेकने का भी हो जो पोस्ट अच्छा न लगे उस पर एक पत्थर तो बनता ही है!!!!!!!!!!!

@व्याकुल

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