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बुधवार, 19 जनवरी 2022

गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस त्योहार का दिवस है। कितने बलिदान हुये मानसिक बंधन से मुक्त को। यह मुक्ति सालों साल शोषण से मुक्ति भी था। विचारों का प्रकाट्य आपके चेतना का परिचायक है...

रचना नं. 1

पवित्र त्योहार से लगते हो


जब भी आते गंगा बनकर आते हो

विशुद्ध समष्टि चेतना भर कर आते हो

पवित्र त्योहार से लगते हो


कल कल पावनी बहते हो जन जन में 

तन तन उमंग से लाते हो मन मन में

पवित्र त्योहार से लगते हो


अंगज हो तुम विशुद्ध आत्मा विद्वानों की

जिसके पग ने किया पवित्र भरत भूमि की

पवित्र त्योहार से लगते हो


काल काल से साक्ष्य बनी सुत के चित्कारों की

प्राणमयी बन तार दिये लिये अंक भागीरथी सी

पवित्र त्योहार से लगते हो


कर क्रंदन कितने घाव अंकित रक्तपात वीरों के

क्षत्रिय बन मुट्ठी भी भींच लिया जल अंगारों में

पवित्र त्योहार से लगते हो


सौ सौ निडर बीज पड़े सो रहे उर में है जिसके

कर पल्लवित दमन करे तम भ्रष्ट दलालों के

पवित्र त्योहार से लगते हो


नमन नत् करूँ कैसे मै उस चेतन पावन को

कण कण श्वास श्वास में राष्ट्र प्राण भरे हो जिसने

पवित्र त्योहार से लगते हो

@व्याकुल

रचना नं. 2

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🇮🇳

राष्ट्र के उत्तुंग शिखर पर
जन-जन के उन्मुक्त मन पर
राग राग सा छाया है
गणतंत्र दिवस आया है...

संघर्षो की भीषणता को
स्मृतियों से उद्गार को
जिसने मन को हर्षाया है
गणतंत्र दिवस आया है...

कुटिलों के पराभव को
चेतना के निर्माण को
एक नया युग आया है
गणतंत्र दिवस आया है...

तरूणो के उमंग को
रक्तबीज के मर्दन को
संकल्पीत जीवन आया है
गणतंत्र दिवस आया है...

राम की धरा पर
शापित के तारन को
नव युग फिर आया है
गणतंत्र दिवस आया है..

@व्याकुल


नियति

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