थोप देना
सर पर भारी बोझ
कुन्तल दो कुन्तल
या जितना
तुम चाहो
शून्य है
हाड़-माँस
शिराओं
से
व
रक्त
नही बहते
इसमें
क्या कभी
देखा
तुमने
पूरी
गृहस्थी
बसाये-समाये
सर
को
सफेद
पोश गण
झूटे
बहस
पर
बहस
करते रहते
टी.वी.
रेडियो पर...
लाद देते
चुनावी
वादे
और
फेंक देते
सर की गठरी
मनुज
की...
@व्याकुल