चींटी सा ही चलू
पर चलता ही रहूँ
नित नये कलेवर में
जन रवायत है ऐसा
करे जतन विस्मृत का
रंग नये हो या
संग नया हो
प्रमाण देते
पुनर्जीवन का
कौन देखे श्वेत श्याम
खीचें जाये रंगो में
सप्तरंगी हो जाऊ मै
चुन लू जाऊ अपने ढंग से
तिनका हूँ प्रवाह की या
पंक्ति बनू काफिलों की
चींटी सा ही चलू
पर चलता ही रहूं।
@व्याकुल