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शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

चींटी

चींटी सा ही चलू

पर चलता ही रहूँ 

नित नये कलेवर में

जन रवायत है ऐसा

करे जतन विस्मृत का


रंग नये हो या

संग नया हो

प्रमाण देते

पुनर्जीवन का


कौन देखे श्वेत श्याम 

खीचें जाये रंगो में

सप्तरंगी हो जाऊ मै

चुन लू जाऊ अपने ढंग से


तिनका हूँ प्रवाह की या

पंक्ति बनू काफिलों की 

चींटी सा ही चलू

पर चलता ही रहूं।

@व्याकुल

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