डरा रहता हूँ...
डरा ही रहता हूँ..
कंपित मन बुजुर्गों के बिछड़ने से
या गंभीर से खामोश लफ्जों से
बड़ों की बढ़ती झुर्रियो से
शुन्यता पर उलझतें नजरों से
महफ़िलो में सधे अल्फ़ाजो से
कोठरियों में हाफते फेफड़ों से
काँपते उँगलियों की थपकियों से
अन्तर्मन में बहते अश्रुओं से
ढलते उम्र की शीर्षता से
या घाटी से झुके कंधो से
अवसान की सीढ़ियों से
या डग मग बढ़े कदमों से
डरा रहता हूँ...
डरा ही रहता हूँ..
@व्याकुल