वैभव की कुछ दिन पहले ही नई नौकरी की ज्वाइनिंग गुडगॉव में हुई थी। छोटे शहर भदोही से निकलकर बनारस से उसने उच्च शिक्षा ली थी। वो अपने जीवन में कभी भी बड़े शहर नही गया था। बड़े शहर का चकाचौंध छोटे शहर से निकले हुये इंसानों आकर्षित करता रहा है।
वैभव के अपार्टमेंट में सुबह से शाम सभी भागते हुये नजर आते है। वो अकेला फ्लेट में रहता था। एक दिन शाम को उसके फ्लेट की कॉल बेल बजी। उसने देखा उससे मिलने नवयुवती आई हुई है। वो नवयुवती जिसकी आँखे बड़ी-बड़ी, चमकीला व हँसता चेहरा व माथे की बड़ी बिंदी जो किसी को भी आकर्षित कर ले। वैभव दरवाजा खोल ही पाया था कि उस नवयुवती ने पूछा,
'आप क्या पड़ोस में नये-नये आये है?'
मै सिर्फ सर ही हिला पाया था।
"कोई दिक्कत हो तो बतलाना", वो बोली थी।
मैने कहा, 'जी'।
मेरे इतना कहने पर वो चली गयी थी।
मै सिर्फ उसके बक बक में उलझ कर रह गया था।
अॉफिस से आते जाते मुलाकात होती रही।
एकाध बार अपने छोटे से बच्चे के साथ दिख जाती थी वों। मैने अनुमान लगा लिया था कि ये बच्चा जरूर उसका ही होगा। पति शायद कही शहर से बाहर नौकरी कर रहे होंगे। मेरी कभी हिम्मत नही हुई उससे व्यक्तिगत प्रश्न करने की।
पहनावा से ऐसा लगता था जैसे वो पतिव्रता नारी हो।
समय कब पंख लगाकर उड़ जाता है पता ही नही चलता। इस तरह से मेरे तीन महीने गुजर गये थे। उस फ्लेट में रहते हुये वो जब भी मिलती बक बक लगाये रहती। मै भी चुपचाप उसकी सुनता रहता। इन महीनों में कभी उसके पति नही दिखे।
एक दिन सुबह कॉल बेल बजी। देखा तो वही थी।
मैने पूछा,
'जी मैडम'
वो बोली,
'वैभव जी, आज आपका चाय मेरे साथ होगा।'
मैने कहा,
'इतना परेशान न होइए'
वो बोली,
'मै कोई औपचारिकता नही निभा रही हूँ'
उनके ड्राइंगरूम में महँगे सोफे थे। हर चीज बड़े करीने से सजे हुये थे। तब तक चाय व पकोड़े के साथ हाजिर हो चुकी थी।
वो बोली,
'एक बात कहुँ'।
मैने संकेत से हाँ में सिर हिलाया।
वो बोली,
'छोटे शहर के लोग बहुत संकोची होते है'।
मै सिर्फ मुस्कुरा दिया था।
अब धीरे-धीरे मेरी हिचक जाती रही। अब उनके साथ बाहर घूमने लगा था।
एक दिन शाम की चाय के समय मैने पूछ ही लिया,
"आपके पति कभी नही दिखते"
उसकी आँखो में आँशू आ गये थे।
मै मौन था।
थोड़ी देर बाद वो अपने को सामान्य करते हुये बोली,
'वैभव, मेरा उनसे तलाक हो गया है'।
मै अवाक् रह गया था क्योकिं उनके पहनावा व इतनी उर्जामयी शख्सियत से इस बात का अंदाजा नही लगाया जा सकता था। शायद शादीशुदा सी जिन्दगी जीना समाज से खुद को बचानें के लिये होगा।
मेरे हाथ खुद-ब-खुद उनके हाथ को अपने आगोश में ले सांत्वना दे रहे थे। एक अजीब सी नजदीकियां महसूस हो रही थी दोनों के बीच।
ऑफिस के अलावा सारा वक्त उन्हीं के साथ व्यतीत होने लगा। सारी दूरिया खत्म होने लगी थी। अब वो मेरी जिन्दगी में अच्छी खासी शामिल हो चुकी थी। मै भी अब पूरी तत्परता से उनकी मदद करता।
हमेशा ही वो मुझसे कहती,
'वैभव वादा करो कि तुम मेरे दोस्त बने रहोगे'।
मै संकेतों में सकारात्मक जवाब दे देता।
उस दिन की सुबह हिला देने वाली थी। उसके फ्लेट से लगातार बच्चे के रोनें की आवाज आ रही थी।
मैने उनके घर की बेल बजायी। कोई प्रतिक्रिया नही आयी। मन अनहोनी की आशंका से व्यथित था। अपार्टमेंट के कई लोग इकट्ठे हो चुके थे। पुलिस बुलाई गयी। दरवाजा तोड़ा गया।
आँखे फटी की फटी रह गयी और वो पंखे से लटकी मुझसे कह रही हो,
'वैभव वादा करो कि तुम मेरे दोस्त बने रहोगे'।
हाँ, वादा रहा। मै मन ही मन बुदबुदा रहा था।
मै देरतक उस छोटे से बच्चे के सर पर अपने हाथ से सहलाता रहा था।
@व्याकुल