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रविवार, 20 फ़रवरी 2022

गुनाह



शक करते रहे थे उम्र भर

चुगली थी इस कदर गैरों की...


चर्चा शहर में आम हो गया

शहर फिर बदनाम हो गया..


वो इस कदर नादान थे

यूँ बेखबर हो हवाओं से..


रोकते भी कैसे खुद को

मचले अरमान थे अदाओं पे


"व्याकुल" खुद के भी न रहे

जो कातिल हो गये गुनाहों के..


@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...