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शनिवार, 8 जनवरी 2022

हिमालय

 


बनना तो 

चोटी

हिमालय

श्रृंग सा...


 पिघल 

भी 

जाना  

तृप्त 

करने को...


करके 

आत्मसात 

छोटे 

नीर को...


इठला 

कर 

भटक 

न जाना

राह में...


भर 

आना 

झोली 

हाथ फैलाए

इंसानों की...


दाता 

बनना 

या 

समाये 

रखना 

बीज 

प्रकृति का....


इतना 

ही 

करना 

हिमालय सा 

अटल 

बने रहना...


@व्याकुल

नियति

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