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शुक्रवार, 2 सितंबर 2022

शादी के लड्डू

 

मित्र बड़ा ही अनोखा था। शादी के फैसले नही ले पा रहा था। गलती उसकी नही थी। पिता दिवंगत हो चुके थे। अकेला था। लोग आते शादी के लिये, वो सबको बैरंग लौटा देता। 

जब पूछता "भाई, शादी के लिये हाँ क्यों नही कर रहे..."

"यार कुछ समझ नही आ रहा" उसका जवाब होता।

मै चुप रह जाता। मुरादाबाद में मेरी पहली पोस्टिंग थी। और वों मेरे पड़ोसी होने के साथ-साथ गाईड भी था। उस शहर के बारे में खूब बतियाता।

छुट्टी का दिन था। बीड़ी की महक मेरे कमरे तक आ रही थी। गॉव से कुछ लोग फिर शादी के लिये आये थे। बीड़ी मुँह में था सभी के। मै अपना कमरा जैसे ही खोला नथुनें तक धुँआ भर गया था। किसी तरह दूर जाकर तेज से साँस ली थी तब जान में जान आयीं।

तुरंत कमरे में कैद हो गया। 

थोड़ी देर बाद मेरे कमरे में नॉक हुआ। वही पड़ोसी मित्र था। 

मैने पूछा, "शादी के लिये आये थे क्या?"

हाँ,,,जवाब दिया था उसने। 

इस बार थोड़ा खुश था वों। 

लड़की वाले बोल रहे थे, "सड़क के बगल वाली जमीन आपके नाम कर देंगे। बस आप शादी कर लीजिये"

मैने बोला, "शादी कर लीजिये। इन सब मामलों में ज्यादा नौटंकी ठीक नही। वैसे भी आप 35 पार कर चुके हो ।"

मै उसकों ऐसे सलाह दे रहा था। मेरी उम्र उस वक्त 25 वर्ष थी। सलाह बुजुर्गों जैसी दे रहा था। पता नही कितना वों समझ पा रहा था।

अगली सुबह वो मेरे पास आया। बोला, "भाई, एक निवेदन है.. मै शादी तो यही करूँगा.. पर..." 

चुप हो गया था वों...

मैने बोला...पर के आगे कुछ बोलोगे ???

शादी की पूरी तैयारी में तुम्हे मदद करनी होगी क्योकि तुम्हारे ही कहने पर शादी कर रहा हूँ।

मै तैयार हो गया था।


गहना.. कपड़ा.. सभी खरीददारी में अॉफिस से आने के बाद लगा रहा।

शादी का दिन आया। मै पहुँच नही पाया था। 

शादी के बाद पत्नी ब्याह कर साथ शहर लाया था।

सुबह ही सुमधुर गाने की आवाज कानों में सुनाई पड़ रही थी।

अब हफ्तों पड़ोस में होने के बाद भी मुलाकात नही होती थी। मै खुश था.. "अपने पड़ोसी की खुशी देखकर"

मित्र पत्नी को साईकिल में बैठाकर हवा से बात करता और गुनगुनाता.." कौन दिशा में लेकर चला ले बटुहिया..."

मैने मकान बदल लिया था। अॉफिस के कॉलोनी में शिफ्ट हो गया था।

आज अॉफिस से लौटते वक्त घर के पास वाले मोड़ पर मिल गया था। मुझे ऐसे घूर रहा था जैसे मेरा गला दबा देगा...

मैने पूछा,"क्या हुआ मित्र???"

"आपने मुझे फँसा दिया शादी के चक्कर में। मुझसे बात नही किजियेगा आज से"

"बहुत झगड़ालू किस्म की है वो। जब देखों लड़ती रहती है..." "यार.. आजकल फटफटिया की जिद्द किये बैठी है"

मै क्या जवाब देता। मै खुद नादान था। अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह से निकलने का गुन नही आता था। 

बस यही सुन रखा था कि शादी के लड्डू इंसानों के गले में भी नीलकंठ से अटक जाते है......

@विपिन पाण्डेय "व्याकुल"

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