FOLLOWER

बुधवार, 11 मार्च 2020

व्यक्तित्व निर्माण


व्यक्तित्व का निर्माण कई सालो की तपस्या के बाद होता है और इसका स्थिर रहना मूल स्वभाव होता है.. जो लोग  किसी के क्षद्म व्यक्तित्व से क्षणिक रूप से प्रभावित होते है वे हमेशा धोखे मे रहते है.. कुछ लोग सामने वाले से जैसा चाहते है वैसे ही व्यक्तित्व देखना चाहते है जबकि सार्वभौमिक और सर्वमान्य व्यक्तित्व से कम लोग ही प्रभावित हो पाते है.. व्यक्तित्व के साथ ही साथ धैर्य भी अपनी अहं भूमिका अदा करती है कब आपका धैर्य टूटा और व्यक्तित्व धाराशायी..हम सबका व्यक्तित्व तो बचपन में कहानियाँ सुन-सुन कर बना जो माँ या घर के बूढ़े-बुजुर्ग बड़े चाव से सुनाया करते थे.. तब कही बाहर से लड़ के घर आने पर उन सबकी डाँट पहले पड़ती, भले ही खुद की गलती ना हो.. अब तो ये पहलू गायब हो चुका है। अंजाने मे वो व्यक्तित्व निर्माण प्रक्रिया गायब हो चुकी है.. आत्मचिन्तन करे.. व्यक्तित्व निर्माण कोई संस्था नही दे सकती सिवाय पारिवारिक संस्था के..

@व्याकुल

चापलूसनामा


बड़े बड़े लोग चापलूसों के आगे नतमस्तक रहते है। चापलूस लोग महिमामन्डन मे पीछे नही रहते है। व्यक्ति को एहसास दिला ही देते है किं इस धरा पर आप जैसा शूरवीर नही.. मजाल है कोई दूसरा सही बात कह पाये.. जिसकी सत्ता आने वाली हो या आ चुकी हो उसकी चिंता कर स्थान बना लेते है ये वैसे भी सत्ता से दूर नही रह पाते.. सत्ता से दूर ये ऐसे लगते है जैसे किसी ने इनको बहुत दिन से भूखा रखा हो या गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया हो.. इनका प्रयास जारी रहता है कैसे घुसपैठ किया जाय.. कुछ सत्तासीन को यही चापलूस लोग ही पसंद है इनके बिना सत्ता कुछ फीकी फीकी सी लगती है..बड़ी बड़ी साहित्यिक रचनायें रच गयी इस चक्कर में.. चालीसा तक लिख डाली लोगों ने..

चापलूसों की भी श्रेणी अलग-अलग होती हैं। कुछ लोग जीवनी लिखने के बहाने नजदीकी बनाते है। कुछ जरूरत से ज्यादा चिंता करके जगह बनाते है। कुछ सतत् उपस्थिति दर्शाकर। 

ऐसे लोगों का आत्मविश्वास भी गज़ब का होता है। चेहरा भी दयनीय बना लेते है। एक बार वरदहस्त प्राप्त हो जाये फिर तो पूछियें मत।

बहुत ही ज्यादा समर्पण कर देते है यें खुद को। अब तो जमाना सोशल मीडिया का है। मजाल है चरण पादूका सर पर रखने का कोई मौका चूक जायें।

इनका पूरा एक ग्रूप है हर पार्टी में है यही गठबंधन में भी अहम् भूमिका निभाते है.. हर पार्टी को अपने लोगों के बीच में से ही चापलूसों को चिन्हित करना होगा..

@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...