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गुरुवार, 26 मार्च 2020

होली

होरी मनाऊँ कैसे!!!!!!

स्वाँग रचु गोरी का
या ढपली का थाप
बजाऊँ
या फगुआ अलापू
होरी मनाऊँ कैसे

ऊपले चुराऊ
दहन को
या लट्ठ खाऊँ
जोर की
होरी मनाऊँ कैसे

बनारसी रँग में
ढल जाऊँ
या भंग का
नशा कर लूँ
होरी मनाऊँ कैसे

गुझियाँ चखु
गुड़ की
या होरहा
खाऊँ
होरी मनाऊँ कैसे

पोत लूँ
हरा पीला
या छूपा लूँ
रंगभेद
होरी मनाऊँ कैसे

बासंतिक बयार
में डूबू
या झूम जाऊँ
बौर में
होरी मनाऊँ कैसे

गुलाल लपेट
लूँ
गले में
या भोला बन
विषधारी बनु
होरी मनाऊँ कैसे!!!!!


होरी मनाऊँ कैसे!!!!!!
होरी मनाऊँ कैसे!!!!!!

@व्याकुल

रविवार, 4 मार्च 2018

त्योंहार

हमारे देश मे त्योहारों का बहुत महत्व है। वर्ष भर कई त्यौहार होते है। इसके पीछे शायद हमारे पूर्वजों का यही मकसद रहा होगा कि इसी बहाने जनता जनार्दन इकट्ठे होंगे। मेल मिलाप होगा। जो हमारे कुटीर उद्योग है उनको पनपने का मौका मिलेगा, पर अब तो सब कुछ बदल गया है। इस हाई टेक युग मे सब कुछ रेडी मेड हो गया है। तभी तो माँ माँ बनना भी पसंद नहीं करती। हम अपनी प्राकृतिक विरासत को खोते जा रहे है सिर्फ अनावश्यक बातों मे अटक गए है। आप का इस पर कुछ विचार हो तो अवश्य प्रकट करे....

@ व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...