व्यक्तित्व का निर्माण कई सालो की तपस्या के बाद होता है और इसका स्थिर रहना मूल स्वभाव होता है.. जो लोग किसी के क्षद्म व्यक्तित्व से क्षणिक रूप से प्रभावित होते है वे हमेशा धोखे मे रहते है.. कुछ लोग सामने वाले से जैसा चाहते है वैसे ही व्यक्तित्व देखना चाहते है जबकि सार्वभौमिक और सर्वमान्य व्यक्तित्व से कम लोग ही प्रभावित हो पाते है.. व्यक्तित्व के साथ ही साथ धैर्य भी अपनी अहं भूमिका अदा करती है कब आपका धैर्य टूटा और व्यक्तित्व धाराशायी..हम सबका व्यक्तित्व तो बचपन में कहानियाँ सुन-सुन कर बना जो माँ या घर के बूढ़े-बुजुर्ग बड़े चाव से सुनाया करते थे.. तब कही बाहर से लड़ के घर आने पर उन सबकी डाँट पहले पड़ती, भले ही खुद की गलती ना हो.. अब तो ये पहलू गायब हो चुका है। अंजाने मे वो व्यक्तित्व निर्माण प्रक्रिया गायब हो चुकी है.. आत्मचिन्तन करे.. व्यक्तित्व निर्माण कोई संस्था नही दे सकती सिवाय पारिवारिक संस्था के..
@व्याकुल