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गुरुवार, 17 नवंबर 2016

मौन (लॉकडाउन पर परेशान कर्मचारी)



त्राही माम त्राही माम । आवाजे आ रही । मुझे नही सुनाई दे रहा । आप सुन रहे क्या । धन लोलुप्ता रो रही । पाप सर चढ कर बोल रही थी । बाल्मीकि की कहानी चरितार्थ हो रही । कौन किसका आखिर । पैसे लिये परेशान हो रहे । पत्नी से बोले देख लो, " नकारात्मक मुद्रा मे सर हिला दिया । बच्चे सामने नही पड़ रहे । आज ही बोध हुआ । इतिहास उदाहरणो से भरा पडा है, क्यो नही सबक लिया । मानसिक विक्षिप्त हो गया । कितने रोते हुए, गिड़गिड़ाते लोगों को अनदेखा कर अपनी माया को बढ़़ाते रहे । पश्चात्ताप से भरे हुए । ग्लानि से जकड़़े हुए । कोना ढूढ़ रहे । झूठी दुनिया से धड़़ाम गिरे । अन्तर्मन हिल उठा । आफिस मे बैठे बाकी लोगो की बातचीत जैसे ध्वनि दीवार से टकरा रहा हो । कुछ सूझ ही नही रहा । 'साहब कुछ लेकर ही कार्य कर दिजिये',ये वाक्य बेमानी लग रहा । एकाएक भावुक हुए सीट से उठे निकल पडे खुद की बेचारगी पर तरसते हुए । मौन चुपचाप अपना रास्ता तलासती रही।

@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...