जमीं की तपती धरा पर
मासूम के पाँव न पड़ पायें
डग तेज से चल रहे
बदले कैसे काँधों को..
गॉवों के मेले हो
या धूलों से सने रेले
विश्व दर्शन कराने
उठा ले अपने काँधों पर..
बतायें न कभी पाठ
रीति दुनिया की
सीख ली ढंग जीने की
कर कृतित्व से उनकी..
तन मन निरंतर दौड़ते
खींचते भार अपनो के
भाव छुपा लेते विश्रृंखल
विश्रांत से चेहरे पर..
@व्याकुल"