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रविवार, 20 जून 2021

पिता (पितृ दिवस पर)


जमीं की तपती धरा पर

मासूम के पाँव न पड़ पायें

डग तेज से चल रहे

बदले कैसे काँधों को..


गॉवों के मेले हो

या धूलों से सने रेले

विश्व दर्शन कराने

उठा ले अपने काँधों पर..


बतायें न कभी पाठ

रीति दुनिया की

सीख ली ढंग जीने की

कर कृतित्व से उनकी..


तन मन निरंतर दौड़ते

खींचते भार अपनो के

भाव छुपा लेते विश्रृंखल

विश्रांत से चेहरे पर..


@व्याकुल"

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...