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बुधवार, 1 सितंबर 2021

तुम

सफर थकाने वाला रहा

आप से तुम तक का 

कल तक मर्यादाए थी

तुम बोल पाने में...


तुम भी बैचेन थी

लकीर तुम्हे भायी नही थी

वर्जनाओं को

तार-तार तुम्हीं ने की थी..


कल स्वप्न देखा था

लहरों को आगोश में लेते हुए

सुबह शुन्य में

विचरण करता रहा


गुँजता रहा कानों में

तुम का घोल

पिघलते रहे आप

बेसबब....


@व्याकुल

नियति

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