रक्त रक्त बह चले
संकरी सी राह में
बाँधते ये देह को
लौह सा प्यार लिये
ताल ताल मिला रहे
धक् धक् कदम यें
रुके नही थके नही
सरपट से ये दौड़ते
कर्ण से न सीखते
सीख लिये मॉ से
सतत् सिंचित रहे
अथक अंधकार में
चार ये गुण लिये
सुत जैसे सरयु के
बिंध दे वैरी को
रक्त ये उतार के
@व्याकुल