पुरबिहा अंदाज में जब कोई "का हो गुरु" बोलता है तो दिल अंदर से बाग-बाग हो जाता है... हाल भी पूछ लिया गुरु बनाकर। बस इस तरह से पूछने का स्टाईल किसी सीनियर से कदापि न करें। सीनियर सही में गुरु निकल गये तो आपको दंड स्वरूप चेलाही करनी पड़ जायेगी।
आपसे अगर कोई गुस्ताखी हो जाये और कोई मुस्कुरा कर पूछ ले कि "का हो गुरु"... तब अंदर से लगता है सामने वाले तगड़ा व्यंग्य मार दिया हो जैसे।
जरूरी है कि आप गंभीर होकर पूछे, "का हो गुरु"... अगर ऐसा नही किया तो सामने वाला आपको हल्के में ले लेगा..
मेरे एक टीचर के निगाह में मेरी छवि अपढ़ाकू की थी। वो दूर से ही टोक देते थे "का हो गुरु"... मेरी सुलग जाती थी.. बोलते भी क्या???वों असली वाले गुरु थे। हमारे में वैसे भी गुरु नही था... ऐसा बोलकर और भी शून्य गुरुत्वा पर पहुँचा देते थे...
कही कोई हमे भी घाट पर मिल जाये.. हम भी दण्डवत हो जाये जिससे कोई कबीर बनाने वाला गुरु मिल जाये... हम भी सीना तान कह सके-
गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।
अब तो बस कालिदास या तुलसी ही बन सकते है.. कबीर तो बनने से रहे...
@व्याकुल