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शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

का हो गुरु


पुरबिहा अंदाज में जब कोई "का हो गुरु" बोलता है तो दिल अंदर से बाग-बाग हो जाता है... हाल भी पूछ लिया गुरु बनाकर। बस इस तरह से पूछने का स्टाईल किसी सीनियर से कदापि न करें। सीनियर सही में गुरु निकल गये तो आपको दंड स्वरूप चेलाही करनी पड़ जायेगी।

आपसे अगर कोई गुस्ताखी हो जाये    और कोई मुस्कुरा कर पूछ ले कि "का हो गुरु"... तब अंदर से लगता है सामने वाले तगड़ा व्यंग्य मार दिया हो जैसे।

जरूरी है कि आप गंभीर होकर पूछे, "का हो गुरु"... अगर ऐसा नही किया तो सामने वाला आपको हल्के में ले लेगा..

मेरे एक टीचर के निगाह में मेरी छवि अपढ़ाकू की थी। वो दूर से ही टोक देते थे "का हो गुरु"... मेरी सुलग जाती थी.. बोलते भी क्या???वों असली वाले गुरु थे। हमारे में वैसे भी गुरु नही था... ऐसा बोलकर और भी शून्य गुरुत्वा पर पहुँचा देते थे...

कही कोई हमे भी घाट पर मिल जाये.. हम भी दण्डवत हो जाये जिससे कोई कबीर बनाने वाला गुरु मिल जाये... हम भी सीना तान कह सके-

गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।

वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।

अब तो बस कालिदास या तुलसी ही बन सकते है.. कबीर तो बनने से रहे...

@व्याकुल



बुधवार, 7 जुलाई 2021

पान

जरूरी नही पान की पीक का प्रत्यक्ष गवाह हर ऑफिस ही बने..घर का कोई भी कोना हो सकता है। "मलमल के कुर्ते पर छींट लाल-लाल" वाला  गाना हमेशा याद आता है जब किसी को थूकते देेखता हूँ.. लगभग हर टॉकिज का कोना पीक से दिख जाता था। 

एक बार एक लखनऊआ पान खाये सिनेमा देखत रहा.. मुँह गोल-गोल घुमाते आँखे फाड़े सिनेमा देखत-देखत मुँह हिलावई के जगह ही नही बची। पीक का अर्थ ही है कोई और की गुंजाईस ही न हो.. नीचे कालीन और थूकने की मुसीबत। फिर क्या था किसी ने सलाह दे डाली सामने वाले की जेब में थूक डालो नही पता चलेगा.. क्योकि जब मै तुम्हारी जेब में थूक रहा था तो तुम्हें भी नही पता चला था। 

भारत ही नही ब्रिटेन का लीसेस्टर शहर सार्वजनिक जगहों पर थूके गये पान की पीक से तंग आ चुका है। कब गुटके का कण सामने वाले की मुँह पर भूअर तिल बन जाये कुछ नही कह सकते।

बालों में बल है आँख में सुर्मा है मुँह में पान।

घर से निकल के पाँव निकाले निकल चले।।

इमदाद अली बहर (https://rek.ht/a/1trr/2) ऐसे ही नही कह दिये पान के बारे में..पान को भी श्रृंगार समझियें... पान भी नाम बदल लेता है जगहानुसार जैसे मगहिया पान.. बनारसी पान और क्षेत्र विशेष का अपना पान.. 

खुले आम अगर कोई आपकों चूना लगा सकता है तो वो पान ही हैं... फिर आप अपना गुस्सा उस बेचारे से लेने की बजाय दिवारों और कोनों पर काहे उतार देते है...

@व्याकुल

सोमवार, 5 जुलाई 2021

साझा

 


साझा 

कभी 

टिकता नही

मन का

ख्याल से

वाणी का

विचार से

राह का

पथिक से...


साझा

जिंदा

रहता है

जीवन की 

संझा व

चंद

लकड़ियों

 में....

@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...