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मंगलवार, 1 जून 2021

धर्मयुग

अगर आपकी पैदाइश 60 या 70 के दशक में हुई हो और धर्मयुग से परिचित न हुये हो तो धिक्कार है आपकों। जैसे आज भी लोग गीता प्रेस की 'कल्याण' पढ़ने के लिये तरसते रहते है वैसा ही इतिहास धर्मयुग का रहा है। इसका प्रथम अंक 1950 में आया। इलाचंद्र जोशी व सत्यदेव विद्यालंकार इत्यादि के हाथो रहा। मै तो बहुत दिनो तक सोचता रहा ये पत्रिका धर्मवीर भारती की है। पूरक थे दोनो एक दूसरे के। 1950 से 1960 तक जितने पाठक बने सिर्फ 5 वर्षो में ही इसके उतने पाठक बन चुके थे। आज भी उसी साईज की कोई पत्रिका देखता हूँ तो बरबस ही धर्मयुग याद आ जाती है।

@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...