गतांक से आगे...
भावेश ने अॉफिस से आते ही अवनी को उदास देखा, उससे रहा नही गया।
"क्या बात है अवनी, तबियत ठीक नही क्या?" भावेश ने पूछा था।
"ऐसा कुछ नही, बस यूँ ही..." अवनी कहती हुई चाय बनाने किचेन चली गयी।
अवनी सपने की कोई चर्चा भावेश से करना ही नही चाहती थी।
यादों में तैर गयी थी साकेत के। घर के ऊपरी मंजिला की खिड़की से साकेत का घर साफ दिखता था। दसवीं की परीक्षा थी अवनी की। रात भर पढ़ती रहती थी। पहले तो कभी ध्यान ही नही गया, पर लगा जैसे कोई उसकी तरफ ही देख रहा है। जैसे ही अवनी उधर देखती वों अपनी नजर हटा लेता। रात को साकेत छत पर ही रहता जब तक अवनी सो नही जाती थी।
अवनी को अब स्पष्ट हो गया था कि साकेत के मन में उसके प्रति लगाव है। कर भी क्या सकती थी ऐसे पागलपन का। धीरे-धीरे उसे महसूस होने लगा था कि रास्तें में कोई उसका पीछा कर रहा है या साकेत देख रहा है। साकेत में इतना खो गयी थी। याद ही नही रहा उसे कि चाय को ऊबले बहुत देर हो चुकी थी।
भावेश ने किचेन में आकर मुस्कुराते हुये कहा था, "अवनी, चाय उबल चुकी है।"
"ओह!!!" इतना ही बोल पायी थी अवनी।
भावेश अपने अॉफिस की चर्चा में मग्न हो गया। अवनी सिर हिलाती रही पर ख्यालों में साकेत ही रहा....
क्रमशः
©️व्याकुल