छुट्टियों में बेहतरीन फिल्म देखने का एक अलग ही मजा होता है। न्यूटन फिल्म किसी नक्सली क्षेत्र में चुनाव ड्यूटी को लेकर बनी है। न्यूटन फिल्म देखते जा रहा था और मुझे 2002 में अपनी ड्यूटी याद आ रही थी जो कि कश्मीर के विभिन्न जगहों पर लगी थी और लगभग मै वहाँ एक महीने रहा था।
लखनऊ से लादे गये और पहुँच गये कश्मीर। शायद वो श्रीनगर का एअरपोर्ट था। वहॉ पहुँचते ही एक हमारे चंचल मित्र किसी फलदार वृक्ष पर चढ़ गये थे और डाल हिला हिला कर लोगो को फल चखने का मौका दिये। बी.एस.एफ. वालो के कहने पर नीचे आये।
श्रीनगर से हम लोगो को पट्टन भेज दिया गया था। श्रीनगर से पट्टन जाते वक्त ऐसे कई बढिया मकान दिखे जो खाली ही था और लग रहा था जैसे सालों से कोई रह न रहा हो। जिस जगह ठहराया गया था उसके ठीक सामने सेब का बाग था। जब सेब खाने का मन होता हम सभी चले जाते और सेब जेबों में भर लाते। बी.एस.एफ वाले बताते थे कि वो बाग किसी कश्मीरी पंडित का था।
पट्टन 7 दिन तक रहा। गोलियों की आवाज सुनाई देना सामान्य बात रहती थी। पट्टन से उड़ी सेक्टर की दूरी ज्यादा नही थी।
बड़ा ही अफवाह व भय का माहौल रहता था....
@व्याकुल
क्रमशः
👍👍
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
हटाएंशुक्रिया
हटाएंकविता, कहानी, निबंध और अब संस्मरण खासियत ये की सभी विधाओं में महारत। अब बस उपन्यास राह गया है और विश्वास है कि वो भी आपकी लेखनी से उम्दा ही निकलेगा। अब लिख ही डालिये। बहुत सुंदर प्रसंग
जवाब देंहटाएंआपने प्रेरक शब्दों की जो झड़ी लगा दी है.. उम्मीद है कुछ अच्छा कर सकुँ व प्रयास और बेहतर हो सके.. आभार मित्र.. वैसे साहित्यिक विधा में रूचि का रास्ता आपका ही दिखाया हुआ है...
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