FOLLOWER

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

कलेवा - 2



राजन पर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो। वह बेचारा असहाय हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था किं उसकें साथ क्या हो रहा है। उसने नगीना फिल्म का एक गाना बहुत सुन रखा था,

"आज कल याद कुछ और रहता नहीं" 

गीत माला में यह गाना उसने कई बार सुना था। 

तभी उसको पता चला किं पुरानी बाजार के पास हीमांक टॉकीज में नगीना फिल्म लगी है। उसे वह फिल्म इतनी अच्छी लगी कि वह चारों शो प्रतिदिन देखने लगा। घर में पैसे नहीं थे। पाँच किलो गेहूं रोज घर से ले जाता था। उसे बेचकर फिल्म के चारों शो के टिकट खरीद लेता था और सुबह 11:00 बजे से लेकर रात को 12:00 बजे तक टॉकीज में बैठा नगीना फिल्म देखा करता था।

कभी-कभी रो पड़ता था वों। जब उसके कानों पर "भूली बिसरी एक कहानी" गानें की लाईन सुनाई पड़ती थी। बुश रेडियों के लिये तड़प उठता था वों।

उसके घर वाले बहुत ही परेशान थे नगीना फिल्म देखने के बहाने वह अपने दुःखी मन को कहीं बहला लेना चाहता था। कुछ दिन तक उसकी पत्नी को कुछ भी समझ नहीं आया था। जब उसकी पत्नी को लगा मैंने रेडियो को रास्ते से हटा कर बहुत बड़ी गलती की है। उसने ठान लिया था की मुंह दिखाई में मिली हुई रकम से राजन के लिए नई रेडियो ला कर देगी।


अगली बार मायके से ससुराल आते समय उसने राजन के लिए रेडियो खरीद लिया था उस दिन राजन के लिए खुशगवार सुबह थी जब उसने सुबह 6:00 बजे विविध भारती में भक्ति संगीत सुना था। 

अब क्या था राजन फिर से अपनी पुरानी रौ में आ चुका था। उसकी दुल्हन भी बहुत खुश थी किं राजन अब घर में ही रहने लगा है।

आज उसने जीप कम्पनीं की बैटरी भी थोक में खरीद लिया था।


@विपिन "व्याकुल"

रविवार, 13 फ़रवरी 2022

गॉव की ओर


कुछ 

ठहराव लें

प्रतिदाय

करें

उन हवाओं का 

जो आज

भी

फेफड़ो

को

निर्मल कर

रही...


नथुने तक

माटी की 

सोंधी खुशबु

उच्चस्तरीय

मानकीय

इत्र से भी

टिकाऊ...


कितना दूर 

का सफर

रहा

गॉव से 

शहर तक का

सात

समुन्दर

भी लाँघ

गये

माटी की

परीक्षा

आखिर

कब तक....


स्नेह सिंचित

कर तुम्हे

बहुक्षम बनाती

याद करो

पोखरा

भैस की

सवारी कर

खुद यमदूत

बन जाया

करते थे....


अश्रु मिश्रित

आमंत्रण

स्वीकार कर

लो

और

लौट जाओ

जड़ 

की ओर....


@व्याकुल

पुलवामा


पुलवामा के शहीदों को नमन💐🇮🇳


भारतीय वीर जवानों ने अपने पराक्रम से न सिर्फ़ देश का मान रखा वरन् दुश्मनों के दाँत भी खट्टे कर दिये..इसी को ध्यान में रखते हुये एक कविता:


तपती दिवा-मध्य हो

या कँटीले रास्ते

पग बढ़ चलें

जहाँ दुश्मनो की कतार हो..


गिद्ध सी निगाह हो

या लक्ष्य को भेदना 

अपलक अचूक हो

ये हिमालयी बाँकुरे...



प्रगलित लौह सा भुज हो

या कवच सा वक्ष हो

चण्डी का अवतार हो

या प्राकृतिक दिवार हो..


भूख हो या प्यास हो

डिगे न लाख आँधी हो

शिकन न आये आन पर

हौसलो की उड़ान हो...


@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...