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रविवार, 13 फ़रवरी 2022

गॉव की ओर


कुछ 

ठहराव लें

प्रतिदाय

करें

उन हवाओं का 

जो आज

भी

फेफड़ो

को

निर्मल कर

रही...


नथुने तक

माटी की 

सोंधी खुशबु

उच्चस्तरीय

मानकीय

इत्र से भी

टिकाऊ...


कितना दूर 

का सफर

रहा

गॉव से 

शहर तक का

सात

समुन्दर

भी लाँघ

गये

माटी की

परीक्षा

आखिर

कब तक....


स्नेह सिंचित

कर तुम्हे

बहुक्षम बनाती

याद करो

पोखरा

भैस की

सवारी कर

खुद यमदूत

बन जाया

करते थे....


अश्रु मिश्रित

आमंत्रण

स्वीकार कर

लो

और

लौट जाओ

जड़ 

की ओर....


@व्याकुल

शनिवार, 3 मार्च 2018

गॉव

जब से गाँव छूटा
पोखरा और तालाब छूटा
द्वारे क रहटा छूटा
तारा (तालाब) क नहाब छूटा
आती पाती क खेल छूटा
सुरेश क द्वारे सुर्रा पट्टी छूटा
दया क बाबू क राग छूटा
दूसरे क पेड़े क आम छूटा
बबा क कठ बईठी छूटा
 दोस्तन क साथ छूटा
दिन भर क मस्ती छूटा
सुदामा क पुरवा छूटा
सूबेदार क बार (बाल) छूटा
खलीफा क तार छूटा
इस्राइल क बात छूटा
भैंसिया पर बईठई क लाग छूटा
गाव क नाच छूटा
कुकुर क दौडाउब छूटा
उखी क चुहब छूटा
होलिका क चुराउब छूटा
होलई क फाग छूटा
बाबू क डांट छूटा
अम्मा क प्यार छूटा
एक एक कर सब कुछ छूटा
मनई से मनई क प्यार छूटा...
@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...