कुछ
ठहराव लें
व
प्रतिदाय
करें
उन हवाओं का
जो आज
भी
फेफड़ो
को
निर्मल कर
रही...
नथुने तक
माटी की
सोंधी खुशबु
उच्चस्तरीय
मानकीय
इत्र से भी
टिकाऊ...
कितना दूर
का सफर
रहा
गॉव से
शहर तक का
सात
समुन्दर
भी लाँघ
गये
माटी की
परीक्षा
आखिर
कब तक....
स्नेह सिंचित
कर तुम्हे
बहुक्षम बनाती
याद करो
पोखरा
भैस की
सवारी कर
खुद यमदूत
बन जाया
करते थे....
अश्रु मिश्रित
आमंत्रण
स्वीकार कर
लो
और
लौट जाओ
जड़
की ओर....
@व्याकुल