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मंगलवार, 1 मार्च 2022

नाता प्रथा

"नाता प्रथा" राजस्थान की पुरानी प्रथाओं में से एक है। आजकल प्रचलित "लिव-इन" का ही प्राचीन रूप कहा जा सकता है। यह गुर्जरों या कुछ ही जातियों तक सीमित है। इस प्रथा में विवाहित स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़ कर किसी के भी साथ रह सकती है बिना किसी रीति-रिवाज के। इसे "नाता करना" भी कहते है।

हो सकता है "नाता प्रथा" विधवाओं व परित्‍यक्‍ता स्त्रियों को सामाजिक मान्यता देने के लिये बना हो।

             चित्र: गूूगल से
इसमें हिंसा के बढ़ जाने से नकारात्मक रूप सामने आने लगा है। इस वजह से कुछ लोग कुप्रथा भी कहते है।

@व्याकुल

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

सूखे पत्ते


पतझड़

के मौसम

में

पेड़ से

गिरते

झरते

सूखे पत्ते...



तंद्रा

भंग करती

हर-पल

प्रतिपल

अहसास कराती

साथ होने का

जैसे

छाँव दिया था

कभी....


बसंत 

भले ही गढ़े

खुद को

नयेे कोपलों

से 

पर

ख्वाहिश

रहती

उन सूखे

पत्तों की

जो

गिरते रहे थे

सर पर

जैसे

बुजुर्ग सा

आशीर्वाद

दे रहे हो

काँपते-हिलते

हाथों से.....


@व्याकुल



नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...