गांधी जयंती हो गयी.. कुछ तो छुट्टी मना कर खुश हुए.. कुछ अच्छे प्रवचन से.. कुछ दुखी इस बात से है की कल फिर ऑफिस जाना है.. त्याग समर्पण सब दुसरो के लिए है.. अच्छी अच्छी बाते करना संभव है.. हकीकत में करने का प्रयास किया तो लोगो के लिए बेवकूफ .. कई बार खुद भी प्राश्चित की भूमिका.. ये क्या कर रहा हु.. अब कौन सिद्धांतो में जी रहा है सब स्वार्थ परस्त जीवन में लिप्त... परेशान कौन हो रहा है.. आपके अंदर की सत्यता को जान रहा है.. झूठ का प्रदर्शन ऐसे करो सत्य भी शर्मा जाए... किसी को इतना मजबूर कर दो भटक जाय.. तुम्हारे जैसा हो जाय झूठा... फिर आराम से खेलो..
@व्याकुल