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सोमवार, 21 जून 2021

कोल्हू

कुछ दिन पहले हमारे एक परिचित ये चित्र सोशल मीडिया पर पोस्ट किये थे और पूछे थे किं ये क्या हड़प्पाकालीन या कोई पुरातन अवशेष है???? मेरे भी मन में विचार कौंधा था किं आखिर ये है क्या? बचपन में इसी पर बैठकर मित्रों के साथ गप्प हुआ करती थी। हमने मामा जी, जो अस्सी वर्ष के है और गॉव के मामलात में अच्छी दखल रखते है, से इस संबंध में पूछा तो उन्होंने बताया किं ये कोल्हू है। 



हालांकि उन्होनें भी इसका उपयोग अपने जीवनकाल में नही देखा था। जानकारी में उन्होनें बताया कि तेल व रस वाली दो कोल्हू उपयोग में लायी जाती थी। बैल द्वारा इसे खींचा जाता था और बीच में बाँस का उपयोग होता था जिससे सरसों-अलसी इत्यादि को पेरने हेतु व्यवस्थित किया जा सकें। बैलों के आँखों मे पट्टी बाँध दी जाती थी जिससे उन्हे चक्कर न आये। बैल पत्थर को घुमाने मे अथाह परिश्रम करता होगा। मजे की बात ये है किं जितने भी आप कोल्हू देखिये सभी में चित्र अंकित है। अर्थ स्पष्ट है- कितने शौक से लोग इसकों बनवाते थे। अब तो कोल्हू और बैल दोनो नदारद है पर मुहावरा इसकी याद दिलाता रहेगा। उसे देखों "कोल्हू का बैल" हो गया...

©️व्याकुल

https://twitter.com/vipinpandeysrn/status/1407049401277820929?s=19

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