पतझड़
के मौसम
में
पेड़ से
गिरते
झरते
सूखे पत्ते...
तंद्रा
भंग करती
हर-पल
प्रतिपल
व
अहसास कराती
साथ होने का
जैसे
छाँव दिया था
कभी....
बसंत
भले ही गढ़े
खुद को
नयेे कोपलों
से
पर
ख्वाहिश
रहती
उन सूखे
पत्तों की
जो
गिरते रहे थे
सर पर
जैसे
बुजुर्ग सा
आशीर्वाद
दे रहे हो
काँपते-हिलते
हाथों से.....
@व्याकुल