मत पूछ धुँआ क्यों उड़ा रहा हूँ
उदासियाँ पिघल रही हो जैसें
ढरक गये अश्क जो पोरो से
गमों का सागर उमड़ आया हो जैसें
सिलवटें बता रही बिस्तर की
ख्वाबों को भुला आया हो जैसें
चला गया आज उसी मोड़ पर
खबर उसने भिजवा दिया हो जैसें
बुत बना रह गया आज उसी जगह
राहे जुदा हो गयी हो जैसें
मुस्कुराता रहा जमाने भर से
दर्द छुपा रहा हो जैसें
हाथ जो मिलाता रह गया उनसे
खुद कही गुम हो गया हो जैसें
@विपिन "व्याकुल"
उदासियाँ पिघल रही हो जैसें
ढरक गये अश्क जो पोरो से
गमों का सागर उमड़ आया हो जैसें
सिलवटें बता रही बिस्तर की
ख्वाबों को भुला आया हो जैसें
चला गया आज उसी मोड़ पर
खबर उसने भिजवा दिया हो जैसें
बुत बना रह गया आज उसी जगह
राहे जुदा हो गयी हो जैसें
मुस्कुराता रहा जमाने भर से
दर्द छुपा रहा हो जैसें
हाथ जो मिलाता रह गया उनसे
खुद कही गुम हो गया हो जैसें
@विपिन "व्याकुल"