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सोमवार, 11 सितंबर 2023

नियति

 

मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार हुई थी। बाबू जी का कहना था , "बिटिया, बाकी की पढ़ाई तुम ससुराल में ही करना"

ससुराल आने के पहले ही दिन मालती का ख्वाब धाराशाई हो गया था। पति श्याम लाल अनपढ़ थे। पंद्रह दिन ही बीते थे कि पति मुम्बई चले गये थे। पति मुम्बई में वॉचमैन (सिक्योरिटी गार्ड) थे। बार के गेट पर नाईट शिफ्ट की ड्यूटी करते थे। कमाई खूब थी। बार में आने वाले नोट पकड़ा जाते थे। 

पति के मुम्बई जाने के बाद से मालती छः महीने ससुराल रही। वह बी. ए. फाईनल वर्ष में थी। दर्शन शास्त्र उसका पसंदीदा विषय था। अंतिम वर्ष का इम्तहान नजदीक था। उसने समझ लिया था। बी. ए. के बाद शायद ही आगे की पढ़ाई सम्भव हो पाये। तर्कशास्त्र की सारी युक्तियाँ समाप्त हो चुकी थी।

पति श्याम लाल को कस्टमर पैसे के साथ- साथ मुफ्त में शराब की बोतल पकड़ा देते थे। वह खुशी खुशी शराब घर ले आता। अब उसकी लत पड़ चुकी थी। संगत भी बिगड़ने लगी थी उसकी।

मालती की दूसरी विदाई अब होनी थी। श्याम लाल भी अब मुम्बई से आ चुका था। गॉव में एड्स चेकअप हेतु कैम्प  लगा था। अगले दिन श्याम लाल ने भी अपना टेस्ट करवाया था। रिपोर्ट आने के बाद श्याम लाल के पॉजिटिव आने की खबर सारे गॉव में आग की तरह फैल गयी थी। 

मालती के दूसरी विदाई के अब दो ही दिन ही बीते थे। एड्स की खबर सुनते ही उसके होश फाख्ता हो गये थे। उसने ससुराल न जाने का फैसला कर लिया था।

तीन महीने बाद सूचना मिली कि श्याम लाल दुनिया छोड़ चुके है। मालती उदास थी। पास के एक स्कूल में अध्यापन कर जीविका चलाने लगी। आगे की शिक्षा के लिये प्रोत्साहित थी। 

मालती स्कूल सोचती हुई जा रही थी कि अब जमाना सिर्फ साक्षर होने का ही नही है वरन् अच्छी शिक्षा होने से भी है।

तभी ई-रिक्शा वाले की घंटी ने उसके अवचेतन मन  को बाहरी दुनिया से जोड़ दिया था...... और तब तक वह स्कूल पहुँच चुकी थी....

मालती के जीवन में अब ठहराव आ गया था। स्कूल में बच्चों को बड़े मनोयोग से पढ़ाती थी। कुछ महीने बाद बी. ए. का परीक्षाफल घोषित हो गया था। स्कूल के अलावा शाम को घर पर ट्यूशन पढ़ाने लगी थी वों।

स्कूल में किसी को भी उसके व्यक्तिगत जीवन के बारे में खबर नही थी। वह उदास व गंभीर रहती। 

स्कूल वालों का विश्वास उस पर बढ़ गया था। प्रबंधक उसके कार्य से प्रभावित होकर अन्य प्रबंधकीय कार्य सौंपने लगा। प्रबंधक युवा व अविवाहित था। एक दिन प्रबंधक ने उससे पूछ ही लिया था, "मालती, तुम विवाहित हो?"

मालती अचानक इस प्रश्न से सकपका गयी थी। बस हॉ ही बोल पायी थी।

अब प्रतिदिन प्रबंधक समय से आने लगे। दोनों की बातचीत भी खूब होने लगी। 

एक दिन प्रबंधक उसके घर अचानक पहुँच गये। मालती के माता- पिता से उनकी मुलाकात हुई। बातचीत में मालती के विधवा होने का पता चला। अब प्रबंधक 2-4 दिन में मालती के घर आने लगे।

एक दिन प्रबंधक ने मालती का हाथ उनके पिता से माँग लिया। पिता क्या बोलते, "हामी भर दी थी"

हँसी- खुशी मालती का जीवन चल रहा था। पाँच वर्ष कब बीत गये मालती को पता ही नही चला। 

इधर प्रबंधक उदास रहने लगे। उनकों पुत्र की अभिलाषा थी। क्रोध नाक पर आ गया था। मालती से कम बात करते थे। इतने बड़े घर में मालती उपेक्षित थी।

एक दिन किसी कार्य से अपने प्रबंधक पति से मिलने उनके चैम्बर तक गयी। अंदर से आवाज आ रही थी "तुम चिंता न करों। मैं उसके खाने में मीठा जहर मिला रहा हूँ। थोड़ा समय लगेगा पर अपना काम बन जायेगा।" वह नयी टीचर को बाहों में समेटे हुये थे।

अगली सुबह स्कूल में हड़कम्प मचा हुआ था। मालती की खोज जारी थी। प्रबंधक हतप्रभ थे। 

मालती ने काशी के अनाथालय का रुख कर लिया था।


@डॉ विपिन "व्याकुल"

रविवार, 20 जून 2021

गंगाजल - 5

गतांक से आगे...

माधुरी के भाई अजीत को कोई संतान नही थी। अजीत की पत्नी को ये पसंद नही था कि माधुरी साथ रहे। 

केस बहुत लम्बा चल गया। माधुरी के पास अब पैसे की कमी रहने लगी। गहने सब बिक गये। 

भाई ढाढ़स देता रहता, 

"बहन, तुम पैसे की चिंता न करना"

माधुरी शुन्य में खोई रहती। अपनी हालत पर तरस आ रहा था। 

पिछले बुधवार को जब मोहन को देखने गयी थी, पता चला था किं उसे टी. बी. शिकायत हो गयी थी। बहुत ही कमजोर हो गया था। बात कहाँ हो पाती थी। सिर्फ आँखों में आँसु रहते थे। 

भाभी ठीक से बात नही करती थी। दिन भर लड़ना। घर के सारे काम करवाती रहती थी। हमेशा अजीत से कहती,

"इस कुलक्षणी को घर से निकालों"

"इसका मेरे सिवाय और कौन है" भाई जवाब देता।

माधुरी किस्मत समझ कुछ नही बोलती।

एक दिन पति के चल बसने की खबर आयी। माधुरी निष्प्राण सी हो गयी।

अजीत बहन को बहुत मानता था। घर की प्रतिदिन की किचकिच से बहुत परेशान था। 

एक दिन बहन से बोला,

"बहन,अगर बुरा न मानों तो कही और रहने की व्यवस्था कर दूँ। सारे खर्चे मै दूँगा। घर की किचकिच से बहुत परेशान हूँ"

माधुरी तैयार थी।

बड़े हनुमान के पास एक छोटी कुटिया में माधुरी रहने लगी। भाई कभी कभी मिलने आता था। 

गंगाजल ही जीविका का सहारा रहा। गंगाजल का क्या मूल्य लगाती??? पैसे जितने मिल जाते संतोष कर लेती। कभी गंगाजल लेकर शहर चली जाती। 

बहुत दिन हो गया था भाई को आये। कभी कदम बढ़ते किं भाई को देख आये पर आधे रास्तें से लौट आती। 

आज कुटिया के बाहर भीड़ लगी थी। माधुरी नही रही थी। लोग उसके मुँह में गंगाजल डाल रहे थे। 

हाय!!!!! वों राख बन गंगाजल की होकर रह गयी....

©️व्याकुल

समाप्त

शनिवार, 19 जून 2021

गंगाजल - 4


गतांक से आगे....

आज सुबह माधुरी ने स्वप्न देखा था। एक महिला, जो सजी-धजी थी, जहाज से आयी और पूरे मकान में घूम कर वापस चली गयी। स्वप्न का क्या अर्थ हो सकता है????

माधुरी को नींद आयी ही नही सुबह तक। 

सुबह माधुरी को अजीब सा अहसास हुआ। घर के आस-पास सादी वर्दी में कुछ हलचल महसूस हुई। सब सो रहे थे। दिवार को फाँद कर लगभग बीस-पच्चीस लोग घर मे घुस आये।

माधुरी चिल्ला कर कुछ कहना चाह रही थी, तभी उसका मुँह बंद कर दिया गया। घर से भागने के सारे रास्तें बंद कर दिये गये। 

घर की छान-बीन शुरू हो चुकी थी। तब तक सभी लोग उठ गये थे। मोहन का चेहरा पीला पड़ चुका था। 

मै हतप्रभ रही। 

"ऐसा क्या हो गया"

इशारों में मोहन से पूछने की कोशिश की।

मोहन मौन था। नजरें नीची कर लिया था। 

मै पहली मंजिल का सारा माजरा समझ गयी थी।

पुलिस कई बक्से नोटों की ले गयी। पूरी मंजिल सील हो गयी। मोहन के हाथों में हथकड़ी। 

अगलें दिन समाचार-पत्रों की मुख्य सुर्खियों में मोहन ही थे। समाचार पत्रों से मुझे भी पता चला किं घर में करेंसी छापने की मशीन लगी थी।

मुझे तो सारा दिन स्वप्न ही तैरने लगा। समझ नही आ रहा, क्या करूँ????

मोहन को छुड़ाने के सारे प्रयास असफल हुये। मामला कोर्ट में था। घर की नीलामी हो गयी। मै भाई के घर इलाहाबाद आ गयी.....

©️व्याकुल

क्रमशः

https://vipinpanday.blogspot.com/2021/06/5_20.html

गंगाजल - 3

 गतांक से आगे...

शादी के इतने वर्षो बाद भी माधुरी का दिनचर्या बहुत ही संतुलित था। नौकरों से दयालुता का व्यवहार था। किसी के भी बीमारी या शादी में पैसे की कोई कमी नही होने देती थी।

आज सुबह पूजा में बैठी ही थी कि घर में कोलाहल का आभास हुआ था। पता चला कि राम दयाल को दिल का दौरा पड़ गया। हॉस्पिटल पहुँच ही पाते साँसे थम चुकी थी। घर पर मातम छाया हुआ था। मोहन को तो जैसे होश ही नही रहा। 

समय ने कैसी करवट ले ली थी माधुरी के जीवन में। अभी कुछ ही दिन तो हुये थे मॉ-पिता एक दुर्घटना में चल बसे थे। भईया इलाहाबाद आकर बस गये थे।

अब मोहन अकेला रह गया था। सच ही कहा गया है किं पिता का साथ किसी भगवान से कम नही होता। पिता तो वो हैं जो आपकों कभी हारने नही देते। पिता तो वो हैं अपने सारे अनुभव उड़ेल देते है बच्चों में। उन्हें हमेशा ही अपने बच्चें नासमझ लगते है। मोहन का नियम था, सुबह प्रतिदिन एक घंटे पिता के पास बैठते थे। आज पिता का साया उठने पर किसी से आँखे मिलाने का साहस नही कर पा रहे थे।


ससुर के जाने के बाद से माधुरी ज्यादा सजग रहने लगी थी। उसकों बस हमेशा ही एक बात अखरती रही है.. मुझे आज तक क्यों नही पहले मंजिल पर जाने दिया गया। कुछ लोग तो बे-रोक टोक चले जाते थे, पर मैं नही। आखिर ऐसा क्या था। वों इंतजार में थी किं कभी ऐसा समय आये जब लोग घर में न हो, तब देख आयें। मोहन से कई बार पूछा भी था। उसने हँस कर टाल दिया था और कहा करता था, "तुम्हें बिजनेस समझ नही आयेगा।" 

माधुरी असंतुष्ट अपने घरेलू व्यवस्थाओं में लग जाती।

आज सुबह से ही शहर में हलचल थी। इधर कुछ दिनों से समाचारों में भी ये बात सुर्खियाँ बनी हुई थी। दिल्ली से पचास अधिकारियों का डेरा कानपुर में लगा हुआ है....

©️व्याकुल

क्रमशः

https://vipinpanday.blogspot.com/2021/06/4_19.html

गंगाजल - 2


गतांक से आगे....

माधुरी को अपने पति मोहन से कभी कोई शिकायत नही रही। सब कुछ हँसी-खुशी अच्छे से चल रहा है। पति ने भी कभी कोई कमी नही कर रखी है। 

मोहन का कानपुर शहर के बीचों-बीच बड़ा सा घर है। नौकरों के रहने के लिये अलग व्यवस्था थी। उस बड़े से मकान में मोहन के भतीजे व और भी रिश्तेदार बड़े मौज में रह रहे है। 

माधुरी आनन्देश्वर मन्दिर हर सोमवार जाया करती। शिव की आराधना उसने 10 वर्ष की उम्र से ही शुरू कर दिया था। मॉ बहुत समझाती, 

"बिटिया, शरीर को इतना न कष्ट दे" 

पर माधुरी को जैसे शिव भक्ति के विपरित सुनना कुछ अच्छा नही लगता था। आज भी उसने जैसे प्रण ले लिया हो शिव भक्ति का।

मोहन की साख कानपुर के बड़े घरानों में अच्छी थी। ऐसा कोई नही था जो मोहन की उपेक्षा करता। दान-पुण्य खुल कर करता था मोहन। 

राम दयाल फर्नीचर के पुराने व प्रतिष्ठित व्यवसायी थे। यह उनका पुश्तैनी व्यवसाय था। कुछ दिनों से राम दयाल की तबियत ठीक नही थी। मोहन ने न सिर्फ अच्छे ढंग से व्यवसाय ही संभाला था बल्कि बहुत आगे तक लेकर जा चुके थे। 

मोहन का सपना था कानपुर के सबसे धनाढ्य वर्गों में उसका नाम हो वो उसने प्राप्त कर लिया था।

©️व्याकुल

क्रमशः

https://vipinpanday.blogspot.com/2021/06/3_19.html

शुक्रवार, 18 जून 2021

गंगाजल - 1


आज उसकी शादी के एक वर्ष हो गये थे। बहुत ही बड़े घर में शादी हुई थी। धन-दौलत की कोई कमी न थी। हर काम के लिये नौकर-चाकर। इच्छा जाहिर करने भर की देर थी। 

माधुरी के पिता शिव चरन मिर्जापुर के बड़े वकील थे। शिव चरन की ख्वाहिश भी थी किं सम्पन्न घर में ही विवाह करना है। राम दयाल के लड़के मोहन से माधुरी का विवाह जेठ माह में हुआ था। हाथी, घोड़ा व पालकी सभी कुछ तो आया था। चिलबिला का नाच भी। बड़ा ही मनमोहक था सब कुछ। आस-पास कई महिनों तक शादी ही चर्चा का विषय रहा। मिर्जापुर के प्रतिष्ठित कॉलेज का प्रांगण दुल्हन की तरह सजाया गया था। हर एक व्यक्ति हर्षोल्लास के साथ बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा था।

माधुरी एक मात्र पुत्री थी। बहुत ही लाडली। माधुरी सौम्य,सुशील व मृदुभाषी थी। सबकी प्यारी। भाई छोटा था। पिता ने खर्च करने में कोई कोर कसर नही रख छोड़ी थी।

बारात तीन दिन तक रही थी। नाच-गाने का माहौल बना हुआ था। दोनों तरफ के पंडितों का शास्त्रार्थ भी हुआ था। उस दिन माधुरी का सपना सच हो गया था....

@व्याकुल

क्रमशः

https://vipinpanday.blogspot.com/2021/06/2_19.html

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...