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शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

मौत


कश्मशा रहा ये सोचकर
कह सकुँ कुछ
हाथ बढ़ाँऊ
और पकडुँ
तेरा हाथ
कह सकुँ
चलो कही घूम ले
या कहु कुछ
बहाने से
तब शायद मान जाओ...

आँखों में आँखे
डाल कर
समझाऊ
अब दुबारा नही होगा
हाथ बढ़ाऊ
तो
छू नही पाता
दूर इतना तो
नही
तुम देखती भी
नही...

आँसु ठहर
गयी
किनारों पर
याद आया
ये तो सिर्फ
एहसास है
अस्तित्व
रूह का..

बस देखते
रहना है
और निरुत्साह सा
भ्रम में जीने की
लालसा...

@व्याकुल

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