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बुधवार, 30 जुलाई 2025

छत

 



सारे जवां आहा नाचे-नाचे

अऊआ अऊआ, अऊआ अऊआ


बप्पी लहरी का यें गाना खूब जोरो पर था। समग्र प्रताप कुछ दिन पहले ही मोहल्ले में आया था। वह महाराष्ट्र से था। 


उन दिनों जाड़े का सीजन था। वैसे जाड़े के मौसम में संजीव साब पर  फिल्माया गाना "जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर... आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को" सुबह रेडियो पर यह गाना सुनायी पड़ जाता था तो धूप में और भी जादू बढ़ जाता था।


समग्र जिस मकान में किराये में रहता था उस मकान के छत व बगल वालें घर के छत के बीच दस फीट की दीवार थी। 


समग्र नया नया टेप रिकॉर्डर  लाया था। उस वक्त डिस्को थीम के गाने तेज आवाज़ में सुनता था। पूरे मोहल्ले के लिये आकर्षण का केंद्र था।


सब बढ़िया चल रहा था। पहले  मोबाइल जैसी कोई चीज होती नहीं थी।  गप्प, ठहाके व चुटकुलो का दौर चलता था तो खत्म होने का नाम ही नहीं लेता था।


बगल के छत से जुड़ी हुई दीवार से पता नही कब एक ईट निकल जाने से झरोखा बन गया था। समग्र ज्यादातर उस झरोखे पर आता है फिर वापस छत के दूसरे कोने में चला जाता था।


माहौल और जोशीला होता जा रहा था। उषा उत्थप ने इंट्री लें ली थी अब। "रम्भा हो हो संभा हो हो... रम्भा हो हो संभा हो हो... मैं नाचू तुम नाचो...." ने लय पकड़ ली थी।


वों रात आज भी नहीं भूल पाता हूँ। समग्र रात को तेजी से चीखा था। लगा कोई गले को दबा रहा है। घना अंधेरा था। समग्र चेहरा नहीं देख पाया। जाते जाते चेतावनी दे गया था कोई। अगली बार उठ भी नहीं पाओगे। 


सुबह हुई की नहीं। समग्र बड़बड़ाता जा रहा था। यू. पी. के लोग अच्छे नहीं। सामान तेजी से पैक कर रहा था। कुछ दिनों बाद बगल की छत भी खामोश हो गयी थी। 


बस वों झरोखा कई बहकती साँसों का गवाह बन कर रह गयी थी.......


@डॉ विपिन पाण्डेय "व्याकुल "


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