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शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2021

डर

निडरता बहुत आवश्यक है जीवन में। अगर आप डर गये तो समझिये गये काम से। डर आपका आत्मविश्वास छीन लेता है। 

समाज में जो लोग अग्रिम पंक्ति में है वो कही न कही अपनी निडरता की वजह से। हम आधे से ज्यादा समय इस बात पर निकाल देते है कि लोग क्या कहेंगे। इस प्रकार की चिंता ज्यादातर मध्यम समाज में होता है।

एक प्रकार का और भी डर देखने को मिल जाता है। ये है कल्पना कर लेना कि मेरा नुकसान हो रहा या इस व्यक्ति से नुकसान हो सकता है। फिर उसी के इर्द गिर्द ताने बाने बुन लेना। 

अध्यात्म की दृष्टि बहुत जरूरी होती इस डर से उबरने के लिये। इसमे खोने जैसा कुछ नही होता। सब यहीं पाया है कुछ खो भी दिया तो क्या हुआ।

मुझे तो अपने ताऊ जी से बहुत डर लगता था। बड़ी-बड़ी मूँछें, कड़क आवाज। एक बार निडर होकर मित्रवत क्या हुये डर का पता ही नही रहा। पता नही क्यो मीर असर ने ऐसा क्यो कहाँ..

तू ने ही तो यूँ निडर किया है

बस एक मुझे तिरा ही डर है

जो लोग किसी को निडर करते है उनके लिये मन में सम्मान का भाव रहता है। किसी एक के लिये भी आपके मन डर का भाव है तो आप निडर नही हो सकते।

मेरी तो ख्वाहिस है कोई कह दे जैसा तनवीर देहलवी जी कहते है..

साए से चहक जाते थे या फिरते हो शब भर

वल्लाह कि तुम हो गए कितने निडर अब तो



एक बार रात 12 बजे अकेले स्टेशन से अपने गॉव पैदल चला गया था। कुत्तों के भूँकने में डर दिख रहा था। मै था, मेरा साया था चाँदनी रात में और मन में हनुमान चालीसा....

@व्याकुल

रविवार, 3 अक्तूबर 2021

फिल्मी स्टार व राजनीति

फिल्मी स्टारों का राजनीति में आना हमेशा से ही रोचक रहा है। मै थोड़ा बहुत समझने लायक हुआ तो अमिताभ को राजनीति में पाया। इनके चुनाव प्रचार में पूरा परिवार सम्मिलित रहा है। जया जी माथे पर चश्मा चढ़ाये वोट माँगते हुये। पब्लिक को जया जी के शब्द सुनाई कहॉ देता था। वोट की परिभाषा तो वो जानते ही थे। वो तो गुड्डी को देख रहे थे। हेमवती नंदन बहुगुणा को हरा पाना कोई आसान बात थी क्या। 

उसी चुनाव प्रचार में अजिताभ बच्चन, हरिवंश राय बच्चन व उनकी मॉ को प्रयागराज के खत्री पाठशाला पर बोलते सुना था। 

                           चित्र: गूगल से

इन चुनावों से पहले बच्चन जी को अमृत प्रभात अखबार में देखा करता था। उस अखबार का एक पृष्ठ सिर्फ टॉकीजों में लगी फिल्मी से भरा रहता था। तब 15-20 टॉकिजों में बच्चन जी की फिल्में लगी रहती थी।

श्लोगन हवा में तैरते रहते थे। हम सभी बच्चे थे। श्लोगन समझ भले ही न आये पर जुबान पर रटा रहता था। 

दूसरे फिल्मी स्टार को सुना करता था वो थे सुनील दत्त। उनकी 2000 किमी की पदयात्रा याद है मुझे। कई वर्षो तक सांसद रहे है। फिल्मी स्टारों के राजनीति में आने वालों मे वो बेहतरीन थे। 

लम्बी फेहरिस्त है शत्रुघ्न सिन्हा, राज बब्बर, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना व हेमामालिनी इत्यादि कई लोग राजनीति में आये। कुछ क्षेत्रीय फिल्मों से भी आये जैसे रवि किशन व मनोज तिवारी आदि। कुछ राज्यसभा के लिये मनोनीत भी हुये।

वैसे दक्षिण भारत इस मामले में भाग्यशाली रहा है एन. टी. रामा राव को ही देखिये आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री तक रहे।

तमिलनाडू में एम. जी. रामचंद्रन व जयललिता का नाम विशेष तौर पर लिया जा सकता है। जयललिता 1984 से लेकर 2016 तक राजनीति में सक्रिय रही है।

यह शायद बहुत कम लोगो को पता होगा कि इमरजेंसी के बाद फिल्मी स्टारों ने " नेशनल पार्टी" नाम से पार्टी बनायी थी।

इंतेजार रहेगा फिर किसी सुपर स्टार का.....

@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...