साझा
कभी
टिकता नही
मन का
ख्याल से
वाणी का
विचार से
राह का
पथिक से...
साझा
जिंदा
रहता है
जीवन की
संझा व
चंद
लकड़ियों
में....
@व्याकुल
आस पास तड़पते लोगो को देखना और कुछ न कर पाना कितनी कोफ़्त होती है न। व्याकुलता ऐसे ही थोड़े न जन्म लेती है। कितना तड़प चुका होगा वो। रक्त का एक एक कतरा बह रहा होगा। दिल से कह ले या आँखों से। ह्रदय ग्लानि से कितना विदीर्ण हो चुका होगा। पैर भी ठहर गए होंगे। असहाय इस दुनिया में सिवाय एक निर्जीव शरीर के।
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कभी
टिकता नही
मन का
ख्याल से
वाणी का
विचार से
राह का
पथिक से...
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जिंदा
रहता है
जीवन की
संझा व
चंद
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में....
@व्याकुल
धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...