निषेध
हो
उन
दिवस
का
जो
लघु
करे
असंख्य
अनुभूतियों
का...
सींचती
हर
पल
प्रतिपल
निर्माण
करती
पूर्ण
देह
अस्तित्व
का..
अशक्त
है
अक्षरें
भी
जो
भर सके
रिक्त
वाक्य
मान
का...
@व्याकुल
#महिलादिवस
आस पास तड़पते लोगो को देखना और कुछ न कर पाना कितनी कोफ़्त होती है न। व्याकुलता ऐसे ही थोड़े न जन्म लेती है। कितना तड़प चुका होगा वो। रक्त का एक एक कतरा बह रहा होगा। दिल से कह ले या आँखों से। ह्रदय ग्लानि से कितना विदीर्ण हो चुका होगा। पैर भी ठहर गए होंगे। असहाय इस दुनिया में सिवाय एक निर्जीव शरीर के।
निषेध
हो
उन
दिवस
का
जो
लघु
करे
असंख्य
अनुभूतियों
का...
सींचती
हर
पल
प्रतिपल
निर्माण
करती
पूर्ण
देह
अस्तित्व
का..
अशक्त
है
अक्षरें
भी
जो
भर सके
रिक्त
वाक्य
मान
का...
@व्याकुल
#महिलादिवस
मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...