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रविवार, 30 मई 2021

पढ़ने की आदत और पुस्तकालय

आज की पीढ़ी और आने वाले समय में समाज को एक भयंकर समस्या से ग्रसित होना है.. वह है "पढ़ने की आदत" की समस्या। पुस्तकालयों की मनोदशा के अंदर झाँक कर देखिये। किताबों पर पड़ती धूल। कॉलेजों में कुछ assignment ऐसे मिले जिसमें सप्ताह में एक दिन किसी पब्लिक पुस्तकालय में कम से कम 4-5 घंटे अध्ययन करे व संबंधित प्रोजेक्ट पर कुछ अंक भी निर्धारित हो। पुस्तकालय कदम रखते ही बच्चों को और भी विषय सामग्रियों से वास्ता पड़ेगा जिससे उनमें अध्ययन की आदत पड़ेगी। अध्ययन से विभिन्न विचारों को जानने समझने का मौका मिलता है व खुद के भी विचारों का जन्म होता है। ऐसे ही बड़े विचारकों का जन्म नही हुआ होगा जरूर वे महान पुस्तकालयों की शरण में गये होंगे।

@व्याकुल

(संलग्न आर्टिकल हिन्दूस्तान समाचार पत्र में 12 अक्टूबर, 2019 से लिया गया)


सोमवार, 30 मार्च 2020

कुतुबखाना



यूँ न कर दूर मुझसे खुद को
कबूतरखाना न कहा जाऊँ
भटक क्यो रहा दरबदर
मुकम्मल ठीकाना हूँ मै

वो भी जमाना था कभी
कई उस्ताद गिरफ्त में थे
तलाश फिर उनकी
शहर बियाबां क्यो हैं..

धूल झाँक रही किताबों से
तेरे निशां छुपे हो जैसे
उँगलिया छूँये उन्हे ऐसे
जमाने से तरस रहा हो जैसे

पन्नों के सुर्ख गुलाब
राज छुपायें हो जैसे
दस्तक से खिले ऐसे
बयां कर रहे हो जैसे

आज भी वही वैसे ही हूँ
प्यार से जहाँ छुपाया तूने
हर शख्स में तलाश तेरी
आप सा रहनुमा हो जैसे

@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...