जरूरी नही पान की पीक का प्रत्यक्ष गवाह हर ऑफिस ही बने..घर का कोई भी कोना हो सकता है। "मलमल के कुर्ते पर छींट लाल-लाल" वाला गाना हमेशा याद आता है जब किसी को थूकते देेखता हूँ.. लगभग हर टॉकिज का कोना पीक से दिख जाता था।
एक बार एक लखनऊआ पान खाये सिनेमा देखत रहा.. मुँह गोल-गोल घुमाते आँखे फाड़े सिनेमा देखत-देखत मुँह हिलावई के जगह ही नही बची। पीक का अर्थ ही है कोई और की गुंजाईस ही न हो.. नीचे कालीन और थूकने की मुसीबत। फिर क्या था किसी ने सलाह दे डाली सामने वाले की जेब में थूक डालो नही पता चलेगा.. क्योकि जब मै तुम्हारी जेब में थूक रहा था तो तुम्हें भी नही पता चला था।
भारत ही नही ब्रिटेन का लीसेस्टर शहर सार्वजनिक जगहों पर थूके गये पान की पीक से तंग आ चुका है। कब गुटके का कण सामने वाले की मुँह पर भूअर तिल बन जाये कुछ नही कह सकते।
बालों में बल है आँख में सुर्मा है मुँह में पान।
घर से निकल के पाँव निकाले निकल चले।।
इमदाद अली बहर (https://rek.ht/a/1trr/2) ऐसे ही नही कह दिये पान के बारे में..पान को भी श्रृंगार समझियें... पान भी नाम बदल लेता है जगहानुसार जैसे मगहिया पान.. बनारसी पान और क्षेत्र विशेष का अपना पान..
खुले आम अगर कोई आपकों चूना लगा सकता है तो वो पान ही हैं... फिर आप अपना गुस्सा उस बेचारे से लेने की बजाय दिवारों और कोनों पर काहे उतार देते है...
@व्याकुल