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बुधवार, 15 सितंबर 2021

नमक

किसी ने सही कहा है:

"तुम ने एहसान किया है कि नमक छिड़का है 

अब मुझे ज़ख़्म-ए-जिगर और मज़ा देते हैं"

नमक का महत्व हमारे जीवन में गहरे तक जुड़ा हुआ है। खाने में नमक ज्यादा हो या कम ही हो जायें तो कोहराम मच जाता हैं।

नमक का संतुलन नितान्त आवश्यक है। समुद्र के खारे पानी में से भी अपने लायक कुछ निकाल लेना छोटी बात नही है। 

पुराने जमाने में लोंग जल्दी किसी का नमक नही खाते थे। एक बार नमक खा लिया तो साथ देने से मुकरना नही है या ताउम्र वफादार बने रहना है। गुपचुप ऐसा न करना कि कहना पड़े...

"दामन पे कोई छींट न ख़ंजर पे कोई दाग़ 

तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो"


हफ़ीज़ बनारसी सही ही कहते है:

दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं 

दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं...

हम तो रसायन शास्त्र में पढ़े है.. सोडियम क्लोराइड... ये तो मुझे ऐसा ही लगता है दूबे जी विदेश गये हो और कोई कह दे मि. डूबे...

1973 में एक फिल्म आयी थी "नमक हराम।" इस फिल्म का डॉयलाग भी गजब का था:

"जीने की आरज़ू में मरे जा रहे हैं लोग.… मरने की आरज़ू में जीए जा रहा हूं मैं!"

कही कोई लेख पढ़ रहा था तो लिखा भी था। ताउम्र जवाँ रहना है तो नमक कम कर दें।

नमक अकेला नही है। इस दुनियां में कई भाई-बहन है उसके। जैसे- समुद्री नमक.. सेंधा नमक... काला नमक....

मै कुछ भी लिखुँ और बचपन न आये। हो ही नही सकता। 

बचपन में गॉवों में नेवता के लिये भी जाना होता था तो कोहड़े की सब्जी मिल ही जाती थी...हिमालयी सम्मा (पूरा) आलू की तलहटी में कोहड़ा संघर्षरत्। बस नमक मिलाने की देर होती थी। फिर क्या था??? मति हेराय जात रहा.... चुटकी भर नमक का कमाल आज भी जीभ को याद है.....

@व्याकुल

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