कबाड़ी ढूंढ़ लेता हूँ
धुँधले होते पन्नों को..
मुस्कुरा भी लेता हूँ
सौदा होते देखता हूँ..
पसंद है खुद को बेचना
कीमत लगा देखता हूँ..
आँखे खुली रह गयी
मोल कौड़ी के बिकता देखता हूँ..
मुझे चौराहे पर खड़ा देख
सिक्के उछाल दिये दोस्तों ने..
धुँआ बन यूँ उड़ा वहम
पीठ पर खंजर घोपते देखता हूँ..
@व्याकुल