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शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

कैनवस बॉल टूर्नामेंट

एक दौर था कैनवस की गेंद के टूर्नामेंट का। हर मोहल्ले के गली-कूचों में टूर्नामेंट होता रहता था। उत्साह का माहौल रहता था। 30-40 फिट चौड़ी सड़क पर भी आराम से हो जाया करता था। जरूरी नही टूर्नामेंट का टाईम दिन में हो, अमूमन रात में ही होता था।

जीतने वाले मैच के कप्तान को ट्रॉफी, मैन अॉफ द मैच, मैन अॉफ द सीरिज सबकों ट्राफी मिलती थी। 

एक बार हमारें छोटे भ्राता श्री अपने छोटे दल को लिये एक टूर्नामेंट में भाग लिये थे। 1-2 राउंड जीतने के बाद, मुझे और मेरे कई हमउम्र को शामिल किये थे (वैसे मै क्रिकेट में बहुत अच्छा नही था, पर छोटकी गोल से थोड़ा बेहतर था)।

जब यह टूर्नामेंट क्वार्टर या सेमीफाइनल में पहुँचा ज्यादातर खिलाड़ी बड़े स्तर के आ गये थे। मेरे बड़े भाई, जो उस वक्त 'ए' डिवीजन लीग मैच खेलते रहे थे, की साथियों के साथ टीम में इंट्री हो गयी थी।  

छोटी वाली गोल से सिर्फ छोटे भ्राता कप्तान थे। शुरुआत के सारे खिलाड़ी नदारद थे। 

ये पहला ऐसा मैच था जिसके फाईनल में तीनों भाई थे। घर में पॉच मेडल आये थे।

इसके नियम भी अजीब थे। छक्का एकदम नही था। दो रन और चार रन होते थे। टप्पा खाकर गेंद चॉक के बने बाउंड्रीवॉल से बाहर चला जाये तो चार रन। 

मैच की खूबी यह थी कि संयमित खेल होता था। आस-पास के घरों के शीशे शायद ही कभी टूटते हो।

@व्याकुल

नियति

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