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सोमवार, 13 सितंबर 2021

आई. ए. एस.

हमेशा से ही लाल बत्ती का एक अलग ही क्रेज रहा है। विशेषकर पूर्वांचल और बिहार में। उन दोनों क्षेत्र में और किसी भी नौकरी को उतना सम्मान नही मिलता जितना आई. ए. एस. या पी. सी. एस को। 

अगर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में है तो इसके नशे से शायद ही कोई बच पाया हो। 

60 के दशक या उससे पहले सीट भी कम रहती थी और परीक्षा केंद्र भी सीमित जगहों पर होता था। एक पूर्व पी. सी. एस. टॉपर (1966) ने बातचीत के दौरान बताया कि इलाहाबाद में उस जमाने में पी. सी. एस. परीक्षा का सिर्फ एक केंद्र हुआ करता था।  पब्लिक सर्विस कमीशन में दो हॉल ऊपर-नीचे हुआ करता था। वही परीक्षा होती थी। आजकल तो आई. ए. एस. की परीक्षा में ही एक ही जिला में कई केंद्र हो जाते है।

किसी जमाने में आई. ए. एस. की परीक्षा के परिणाम में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का बोल-बोला रहता था। अब केंद्र खिसक कर दिल्ली हो गया। उसी प्रकार जैसे साहित्यकारों का केंद्र अब दिल्ली हो गया है।

वैसे आई. ए. एस. का अस्तित्व बचाने में पटेल जी की अहम् भूमिका रही है। देश की आजादी के बाद नेहरू जी आई. सी. एस. पद ही खत्म करने वाले थे क्योकि उनकों आई. सी. एस. का व्यवहार कभी पसंद नही आता था। पटेल जी इसके विरोध में थे। पटेल जी ने नाम में संशोधन कर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई. ए. एस.) कर दिया था। पटेल जी दूरदर्शी, मजबूत इच्छा शक्ति व व्यावहारिक शख्स थे। बाद में नेहरू जी आई. ए. एस. अधिकारियों के. पी. एस. मेनन और गिरजा शंकर बाजपेयी से बहुत प्रभावित थे।

सोचिये अगर ये पद ही खत्म हो गया होता!!!!!!

@व्याकुल

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