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शनिवार, 31 जुलाई 2021

मूछें

आजकल के युवा पीढ़ी को देखता हूँ तो लगता है किं जैसे उन्होंने प्राचीन परंपरा को आगे बढ़ाने का जिम्मा ले रखा हों। बड़ी-बड़ी मूछें देख कर अहसास होता है महाराणा प्रताप की भी मूछें ऐसी ही रही होंगी।

जिन लोगों ने मूंछें बढ़ा रखी है उनको देखकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने हल्की-फुल्की जिम्मेदारी ले रखी हो। मूछें रखना कोई आसान काम नहीं है। शीशे के सामने प्रतिदिन सेट करना एक महत्वपूर्ण दिनचर्या है।

हम लोग तो नब्बें के दशक में युवा हुए थे। समाज फैशन फिल्मी दुनिया से सीखता है, हमारे जमाने से मूछों का युग खत्म हुआ था। सलमान-शाहरुख अामिर का पदार्पण हो चुका था, मुछमुंड थे सब। क्या करते हम लोगों को मुछमुंड होना ही था। मेरी तो जैसे इज्जत ही बच गई हो विरल मूछों से कैसे अपनी साख बनाता, सघन होने का नाम ही नहीं ले रही थी। खेतों को आप देख लीजिए विरल खेत उतने आनंददायक नहीं होते जितने की सघन फसल।

अच्छा था अस्सी के दशक में युवा नहीं हुए नही तो अमिताभ बच्चन जी के डॉयलाग पक्का तंग करते, "मूछें हो तो नत्थू लाल जैसी वरना ना हो" 

जैकी श्रॉफ अनिल कपूर जैसे लोग तो सघन मूछों की प्रेरणा दे रहे हो। बच गया था मैं बाल-बाल।

हमारे गांव वाले चच्चा तो आज भी मूछें रखें है। जब तक वों थोड़ा सा भी नही हँसते है तब तक हम सभी को गम्भीर रहना पड़ता हैं। 

हमारे एक भांजे दाढ़ी मूँछ से बड़े प्रभावित रहते थे। अपने कॉलेज में दाढ़ी-मूँछ वाले प्रोफ़ेसर को गुरु मान लिए थे। गुरु के अगर मूँछ के साथ ढाढ़ी भी हो तो विद्यार्थियों पर अलग ही विद्वता का छाप छोड़ देते हैं। ऊपर से वक्ता हुए और ज्ञानी हुए तो आजन्म महिमा बनी रहती है। भांजे महाराज का भ्रम छः माह बाद ही टूट गया था, जब उन्हें पता लगा किं मूंछ ढाढ़ी वाले गुरुजी पढ़ाई छोड़ हर विधा में विद्वान है। 

मुंशी प्रेमचंद जी (आज जयंती भी है) की मूछें हो या चार्ली चैप्लिन जी की मूछें.... एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। जैसे दोनों ने समाज से अलग हटकर कुछ करने की ठान ली हो, दोनों ही लीक से हटकर मूछों का पोषण कर रहे थे।

वैसे मुझे गोविंद वल्लभ पंत की मूछें भाती थी जैसे हँस रही हो।

गाँव में कुछ लोगों की मूछें मट्ठा पीते समय डूब जाया करती थी। पक्का ही वों मस्त हो जाया करती होंगी। दो मिलीमीटर मूछों का मट्ठा में भीगना एक अलग ही शोभा बनाता था। 

मूछों का दाढ़ी से मिलन भी किसी किसी विराट पुल से कम नहीं। फ्रेंच कट में कम से कम ऐसा ही बोध होता है।

भारत में मूंछों का नीचे होना बहुत ही अशोभनीय माना जाता है। मूंछों को अनवरत ऊपर ही होना चाहिए। मूंछों से सम्मान का बड़ा ही गहरा संबंध है। जितनी बड़ी हैसियत उतनी ही नूकीली व बड़ी मूछें। अगर आप माफिया बनने जा रहे हैं तो मूछें रखने का शौक पालना ही होगा।

मूंछ बेचारा बहुत ही संभल कर चलता है क्योंकि थोड़ा सा संतुलन इसका बिगड़ा तो इंसानों की शान मानों गयी। लड़ाई भी मूछों की ही होती है... लखनऊ के एक नवाब ऐसे मुकदमे की पैरवी कर रहे थे जिसमे तारीख व आने जाने का खर्च मुद्दें के खर्च से कही ज्यादा था पर बात मूंछो की थी... 

अच्छा था मैने मूंछो को अपने से अलग ही रखा...

@व्याकुल

नियति

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