बिकते
चंद सब्जी
मोल-भाव
करते
अंतिम
गुंजाइश तक
और
टेटुआ
में
टटोलते
खनकते सिक्कें..
फिर
निरीह से
लौट
लेते
फिर न
सुनायी
देती
हाट की
कोई भी
आवाज
व
भर जाती
शुन्यता
सें
बच्चे की
आशा भरी
पोर..
@व्याकुल
आस पास तड़पते लोगो को देखना और कुछ न कर पाना कितनी कोफ़्त होती है न। व्याकुलता ऐसे ही थोड़े न जन्म लेती है। कितना तड़प चुका होगा वो। रक्त का एक एक कतरा बह रहा होगा। दिल से कह ले या आँखों से। ह्रदय ग्लानि से कितना विदीर्ण हो चुका होगा। पैर भी ठहर गए होंगे। असहाय इस दुनिया में सिवाय एक निर्जीव शरीर के।
बिकते
चंद सब्जी
मोल-भाव
करते
अंतिम
गुंजाइश तक
और
टेटुआ
में
टटोलते
खनकते सिक्कें..
फिर
निरीह से
लौट
लेते
फिर न
सुनायी
देती
हाट की
कोई भी
आवाज
व
भर जाती
शुन्यता
सें
बच्चे की
आशा भरी
पोर..
@व्याकुल
धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...