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रविवार, 30 मई 2021

मन

 

कभी कभी कुछ ताना बाना अंदर से निकलता है.. यही आत्मा की सुर होती है शायद......
कहावत सुनता आया हूँ लुटिया डूब गयी। लुटिया डूबेगी नही तो भरेगी कैसे। लुटिया की आकार या बनावट पर जायेंगे तो यहीं पायेंगे किं खाली ही रहता है और लुटिया डूबेगी वही जहा पात्र भरा होगा
कुछ भी खत्म नही होता। बस उसका रूप व प्रकार बदल जाता है। हताश या निराश होना ही नही चाहिये। प्रकृति अपने हिसाब से चीजो को समायोजन कर रही। प्रश्न है किं बलवान कौन???प्रकृति या मानव। निःसंदेह प्रकृति ही होगा। जिसका निर्माण खुद से होगा वही बलवान होगा। मानव तो निर्भर है प्रकृति पर। ऐसे ही मानव का प्रयास खुद को निर्मित करने का होना चाहिये। ये काम कर लिया तो समझो यथार्थता के चरम को पा लिया। एक बार ऐसा तारतम्य बना लिया तो समझो लयबद्ध हो गये आप। फिर प्रश्न उठता है लय कहॉ और किससे। उसी प्रकृति से। करके देखिये एक बार। मन आनंदित हो उठेगा।
राम राम।
@"व्याकुल"

नियति

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