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रविवार, 4 मार्च 2018

त्योंहार

हमारे देश मे त्योहारों का बहुत महत्व है। वर्ष भर कई त्यौहार होते है। इसके पीछे शायद हमारे पूर्वजों का यही मकसद रहा होगा कि इसी बहाने जनता जनार्दन इकट्ठे होंगे। मेल मिलाप होगा। जो हमारे कुटीर उद्योग है उनको पनपने का मौका मिलेगा, पर अब तो सब कुछ बदल गया है। इस हाई टेक युग मे सब कुछ रेडी मेड हो गया है। तभी तो माँ माँ बनना भी पसंद नहीं करती। हम अपनी प्राकृतिक विरासत को खोते जा रहे है सिर्फ अनावश्यक बातों मे अटक गए है। आप का इस पर कुछ विचार हो तो अवश्य प्रकट करे....

@ व्याकुल

ऊब

मै एक पत्रिका पढ़ रहा था उसमे एक लेख ओशो के विचारों पर थी।काफी अच्छी लगी । उसमे लिखा था "आदमी बहुत जल्दी ऊब जाता है। किसी भी चीज से ऊब जाता है। अगर सुख ही सुख मिलता जाए, तो मन करता है की थोड़ा दुःख कही से जुटाओ। आदमी बड़े से बड़े महल में जाए, उससे ऊब जाता है । सुन्दर से सुन्दर स्त्री मिले, सुन्दर से सुन्दर पुरुष मिले, उससे भी ऊब जाता है, धन मिले, अपार धन मिले, उससे ऊब जाता है। यश मिले, कीर्ति मिले, उससे भी ऊब जाता है। जो चीज मिल जाए, उससे ऊब जाता है। हाँ, जब तक न मिले बड़ी सजगता दिखलाता है, बड़ी लगन दिखलाता है। लेकिन मिलते ही ऊब जाता है।"

कठिनाई एक ही है की संसार की यात्रा पर प्रयत्न नहीं ऊबता, प्राप्ति उबाती है, और परमात्मा की यात्रा पर प्रयत्न की यात्रा पर प्रयत्न ऊबाता है। प्राप्ति कभी नहीं। जो पा लेता है। वह तो फिर कभी नहीं ऊबता ...

@व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...