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सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

ख़्वाहिश

पता है मुझे वों सीतारें है फ़लक के 

जमीं पर रहें पाँव के निशाँ जरूर देखना 


बदलते मौसम की गठरी ग़ुरूर की ज़ब हो 

बहते हुए पसीने की आजिज़ी जरूर देखना


बढ़ चुके जों कदम छोड़ कर तन्हा मुझे 

समय मिले तो पुराने तोहफ़ो को जरूर देखना 


किस्से किताबों में ज़ब दफ़न हो जाये 

पहले पन्ने की सिसकियों को जरूर देखना


खूब करें गुफ़्तगू अजनबी तमाशाइयों से 

साहिल रहें उस शाम "व्याकुल" जरूर देखना


@डॉ विपिन पाण्डेय "व्याकुल"


आजिज़ी = बेबसी




धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...