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रविवार, 26 अप्रैल 2020

लट्ठ

गये थे फिरने गलियन में
नाकाबिल है फिरन को

दर्शन करन लट्ठधारन को
लउट आयेन पश्च मालामालन को

मुँह बाँध न पावें बाबा घूमन को
बन हनु उदास लौटे दुआरन को

सूजत मुँह दोष देत भ्रमरन को
करत मन ही मन पश्चातापन् को

मन ललचावत ढेहरी से खेलन् को
चोंगा तरबतर  हुई जात पसीनन को

दिन में देखत सपन को रोना को
पलक उलट गयों अनिन्द्रन को

फँस गयें बीच दिल दिमागन कों
"व्याकुल" है बड़ी उलझन कों

@व्याकुल

धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...