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शुक्रवार, 25 जून 2021

सफर

अनचाहा

प्रकाट्य

धरा पर

अन्जानें

रिश्ते...


नित्

सामंजस्यता

बैठाते

धूर्तता

लम्पटता से

सने लोग...


सफर तय

कर लूँ

स्थूलता का

देह बाँट दूँ

पंचतत्वों में

और

लौट जाऊँ

शून्य में

लिये सूक्ष्मता

को

अपने साथ...


©️व्याकुल

नियति

  मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार ...